धनंजय मिश्र, साहिबगंज– आदिम जन जाति जिसे झारखंड सरकार विलुप्त प्राय जन जाति का दर्जा दी है। राजमहल की पहाडि़यों के जंगल झाड़ी के बीच व कंदराओं में रहने वाली इस जन जाति के युवकों में भी अब नौकरी के माध्यम से बेहतर जीवन जीने की उम्मीद जगी है। इस जन जाति के पढ़े लिखे नौजवानों को नौकरी देने का प्रयास पहले भी सीधी नियुक्ति के माध्यम से किया गया है और मैट्रिक पास को नियुक्ति दी गई है पर जब से पहाडि़या बटालियन बनाने का प्रयास हुआ है इसमें एक बार फिर उम्मीद जगी है। सरकार ने भले ही पहाडि़या बटालियन के गठन की बात तो कही है पर पहाडि़या युवकों का कहना है कि प्रशासन ने सही रिपोर्ट सरकार के पास नहीं भेज कर उन्हें नौकरी से वंचित रखने की चाल चली है। सरदार अरिजनल सिंह पहाडि़या का कहना है कि पहाडि़या बटालियन में सिर्फ पहाडि़या जन जाति को लिया जाए जिसमें माल पहाडि़या, सौरिया पहाडि़या और कुमार भाग पहाडि़या शामिल हैं पर उनके अलावा अन्य जातियों को भी इसमें शामिल करने की कोशिश हो रही है इससे फिर उनका हक मारा जाएगा। जानकारी के अनुसार इस जन जाति के पढ़े लिखे नौजवानों को नौकरी देने का प्रयास पहले भी सीधी नियुक्ति के माध्यम से किया गया है और मैट्रिक पास को नियुक्ति दी गई है पर जब से पहाडि़या बटालियन बनाने का प्रयास हुआ है इसमें एक बार फिर उम्मीद जगी है। क्या है पहाडि़या की स्थिति : साहिबगंज जिले में आदिम पहाडि़या जन जाति की कुल आबादी 33,717 है जिसमें 17,838 पुरूष व 17,879 महिलाएं हैं। कुल पहाडि़या परिवारों की संख्या 8387 है जो छोटे बड़े 432 गांव टोले में रहते हैं। पहाडि़या युवकों का जीवन अभी पहाड़ों पर चलने वाले खदानों व क्राशरों पर आश्रित है हालांकि अन्नपूर्णा व अंत्योदय अन्न योजना के माध्यम से उन्हें खाद्यान्न उपलब्ध कराया जाता है पर नौकरी देने का प्रयास नहीं के बराबर होता है।
पहाडि़या तलाश रहे हैं अपने भविष्य की राह
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