पक्के मकानों में रहने का अधिकार नहीं ?


. नेह इंदवार
जॉन बारला के एक चाय मजदूर से एक केन्द्रीय मंत्री बनने की बात को जातिवादी, वर्णवादी और पूँजीपति पचा नहीं पा रहे हैं। उत्तर बंगाल के वंचितों के विकास के लिए उनका उत्तर बंगाल अलग राज्य की मांग ने लगता है, बंगाल के शोषक शासकों के तनबदन में आग लगा दिया है। तृणमूल कांग्रेस के एक नेता जो कई चाय बागानों के मालिक और डायरेक्टर भी है, ने बंगाल सरकार से मांग की है कि जॉन बारला के घर और कार्यालय पर सरकार कार्रवाई करे, क्योंकि उन्होंने पीडब्ल्यू की जमीन और बागान लीज जमीन पर पक्का मकान बनाया है। जबकि इन्हीं बागान मालिक ने अपने चाय बागानों में प्लान्टेशन लेबर एक्ट का खुल कर उल्लंघन किया है और मजदूर टूटे फूटे घरों में रहने के लिए अभिशप्त हैं।
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चाय बागानों के मालिकों और डायरेक्टरों को चाय बागान मजदूरों के पक्के मकानों से बहुत एलर्जी है। वे उन्हें टूटे फूटे मकानों में रहने के लिए मजबूर करते हैं और चाहते हैं कि वे किसी भी सूरत में अच्छे मकानों में न रहें।
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पश्चिम बंगाल सरकार और पश्चिम बंगाल के शासक वर्ग कितना मजदूर विरोधी मानसिक ग्रंथी से ग्रस्त है, यह उनके चा सुंदरी योजना से पता चल जाता है। दूसरी ओर बंदरहाट, चामुर्ची, चालसा, माल, बीरपाड़ा, हमिल्टनगंज आदि बाजार और छोटे शहर चाय बागानों की जमीन पर बसे हुए हैं और वहाँ पर बड़े-बड़े मकान और बिल्डिंग बनी हुई है। मजदूरों के शोषकों को इन बातों से कोई लेना देना नहीं।
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उन्हें बागान के मजदूर और आदिवासी एवं गोर्खाओं के घरों से एलर्जी है। उन्हें बस चाय मजदूरों के चाय बागान घर के पट्टे की मांग से बहुत एलर्जी है।
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दुनिया के प्रत्येक देश अपने नागरिकों के जीवन स्तर और नागरिक सुविधाओं को बढ़ाने के लिए अपने तमाम संसाधनों को नागिरकों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए उपयोग करते हैं। लेकिन पश्चिम बंगाल की ममतामयी सरकार चाय बागान के मजदूरों के जीवन स्तर को नर्क बनाने के लिए बजट में 500 करोड़ रूपये का प्रावधान किया है। ममता सरकार चाय बागानों को उनके वर्तमान क्वार्टर और क्वार्टर से लगी हुई जमीन देना नहीं चाहती है। वह उन्हें वहाँ से खदेड़ना चाहती है। दूसरे शब्दों में कहें तो सरकार मजदूरों की बड़ी जमीन को लूटना चाहती है।
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ममता सरकार ने बजट में चाय मजदूरों के आवास “चा सुंदरी” के लिए 500 रूपये का प्रावधान रखा है और युद्ध स्तर पर कई चाय बागानों (मुंजनई, तुरसा, जयबीरपाड़ा आदि) में “चा सुंदरी” योजना के तहत मकान बना रही है। इतनी तत्परता से भारत में मिलीटरी योजना को छोड़ कर शायद ही किसी अन्य योजना में काम हुआ हो। यहाँ दिन-रात काम हो रहा है। लेकिन यह सरकार कभी भी प्लान्टेशन एक्ट को लागू करने के लिए कभी कोई तत्परता नहीं दिखाई है। यह कानून पूरी तरह तोड़ा गया है और सरकार को इसकी कोई परवाह नहीं है।  
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फिलहाल चाय मजदूर न्यूनतम 8 से 12 कट्ठा जमीन पर बने क्वार्टर में रहते हैं। इन क्वार्टरों का आकार 500 से 700 square Feet में है। घर के चारों ओर बचे जमीन में वे गाय, बकरी, मुर्गी आदि का पालन करते हैं और सब्जीबारी भी बना कर रखे हैं। इसके अलावा वे विभिन्न फलदार पेड़ों को भी लगाते हैं, जिनका लाभ उन्हें मिलता रहता है।
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लेकिन ममता सरकार चाय मजदूरों को उनके बड़े घर और जमीन से विस्थापित करना चाहती है और उन्हें 8.4X8.5” और 10.8X8.5” के दो कमरे वाले घर, जिसमें किचन, बैठक, एक छोटा सा बरामदा और टायलेट शामिल है और जिसका पूरा एरिया 326.4 square Feet (वर्गफीट) है, में कैद करना चाहती है। इस योजना के तहत बन रहे दो घरों के बीच 13.10” जगह बचती है अर्थात् एक घर के लिए 6.55 फीट जगह ही होगी। कहाँ 12 कट्ठा जमीन-घर और कहाँ 326.4 square Feet. का घर। इसे इस तरह समझें कि वर्तमान 130 करोड़ भारतीय जनसंख्या विशाल भारत जितनी जगह में रहती है, उसे पकड़ कर भुटान जितनी जगह में ठूँस दिया जाए।  
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एक बीघा जमीन में 14348.29 sq ft होता है। एक बीघा जमीन में 20 कट्ठा जमीन होता है। एक कट्ठा में 717.4145 sq ft होता है। आधा कट्ठा में 358.70725 sq ft या 359 वर्गफीट होता है। ममता सरकार एक मजदूर को 12 कट्ठे जमीन और घर से विस्थापित करके उन्हें आधे कट्ठा जमीन में बना हुआ घर में ठूँस देना चाहती है और इसके लिए वह युद्ध स्तर पर काम में जुटी हुई है। यह सरकार कितना कमीना, शोषक है और गरीब-चाय-मजदूर विरोधी है यह इस योजना से अपने आप ही सिद्ध हो जाता है।
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ममता सरकार ने टी टूरिज्म के नाम पर चाय बागानों के मालिकों को लीज की कुल जमीन में से 15 प्रतिशत जमीन जो 150 बीघा से अधिक नहीं होगा, में टी टूरिज्म योजना चलाने की अनुमति दी है। इस योजना के तहत मालिकों को अधिकार दिया गया है कि अभी जहाँ चाय मजदूरों की बस्ती है, उसे वहाँ से उठा कर अन्य जगह में विस्थापित किया जा सकता है और उनकी बस्ती की जमीन में टी टूरिज्म की योजना के तहत निर्माण किया जाएगा। इस सरकार की चालाकी और हरामीपन को देखिए कि वह मजदूर बस्ती को विस्थापित करने के लिए बागान मालिकों को अधिकार दिया है, लेकिन यह सरकार जनता के टैक्स के पैसे से यह काम खुद कर रही है, अर्थात् यह मालिकों के हित में 500 करोड़ रूपये खर्च कर रही है और चाय मजदूरों को अपने बड़े जमीन और घर से निकाल कर छोटे घरों में कैद करना चाहती है और उन्हें अधिकार-विहीन करना चाहती है। ऐसा लगता है कि सरकार में शामिल नेताओं ने चा सुंदरी योजना के तहत डुवार्स की जमीन लूटना चाहते हैं और इसके लिए सरकारी बजट के पैसों का इस्तेमाल कर रहे हैं। चा सुंदरी की योजना उन्हीं चाय बागानों में लागू किया जा रहा है, जो किसी न किसी कारण से या तो बीमार हैं या बंद हैं।
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चाय बागान मालिक तृणमूल नेताओं को किसी मजदूर के द्वारा पक्के मकान बनाने पर क्यों इतनी खुजली होती है, इसे आसानी से समझा जा सकता है।
चाय मजदूर अपने बागान घर के पट्टे मांग रहे हैं और ममता सरकार उस मांग की काट के लिए चालाकी से बुनी हुई यह चा सुंदरी योजना लेकर आई है। किसी भी देश में अपने मूल निवासियों के साथ इतनी चालाकी नहीं की जाती है। एक ओर चाय मजदूरों को बड़े घर से विस्थापित करने का प्लान है तो दूसरी ओर बंगालदेश से आए लोगों को दिल खोल कर जमीन का पट्टा देने का भी प्लान चल रहा है।
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यदि जॉन बारला वंचितों के हक में अलग राज्य की मांग करते हैं तो क्या बूरा करते हैं। क्या चाय मजदूरों को अपने वर्तमान घर का पट्टा पाने का हक नहीं है? क्या सिर्फ बंगालदेशी शर्णार्थियों को ही घर-बार-कारोबार करने का हक है?

 आखिर चालाकी, शोषण, भेदभाव, अन्याय की भी कोई सीमा होती है।

बागान के टूटेफूटे मजदूर क्वार्टर

फोटो- गुगल

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