क्या अगले 15-20 बर्षों में #बगानियार_बचेंगे_या_खत्म_हो_जाएँगे?
यह एक मौजू नहीं बल्कि बहुत-बहुत ही गंभीर सवाल है। जिसे बगानियार समाज की वजूद रक्षा की चिंता होगी, वह इन सवालों को पूरी तरह समझने का प्रयास करेंगे और इसका उत्तर खोजेंगे।
जब बागानों को दी गई लीज जमीन ही बेच दिए जाएँगे, तो वहाँ चाय बागान बने रहेंगे ही, इस पर बड़ा प्रश्न चिह्न लग गया है!!! जब खानदान की जमीन को परिवार बेच देता है तो वह जमीन हमेशा के लिए खानदान के हाथ से निकल जाता है।
.सिलीगुड़ी से सटे चाँदमुनी बागान को वामफ्रंट सरकार ने बेच दिया था, वह बागान हमेशा के लिए खत्म हो गया और वहाँ आलिशान बिल्डिंग खड़े हो गए। बगानियार कहाँ गए, उनकी बर्बाद जिंदगी से किसी पूँजीपति को क्या लेना देना ????? न्यू चमटा के पास कई एकड़ पर बड़ा होटल बन गया, टीएमसी की सरकार ने लीज की जमीन को बेच दिया, वहाँ बगानियारों को कितना रोजगार मिला??? बाहर के लोग आए और वहाँ उन्हें भारी वेतन का रोजगार मिला। बगानियारों को क्या मिला ??? बाबाजी का ठूल्लू।
.उत्तर बंगाल में 20 लाख परिवारों का नाता चाय बागानों से जुड़ा हुआ है और चाय बागान का नाता यहाँ के सवा लाख हेक्टर लीज जमीन से जुड़ा हुआ है। लीज जमीन खत्म तो 20 लाख परिवारों का वजूद खत्म। टी टूरिज्म, रूग्ण बागान की आर्थिक दशा सुधारने के नाम पर यहाँ के बेशकीमती जमीन पूँजीपतियों को हस्तांतरित करने की योजना अपना कार्य कर रहा है। आईए इसे बहुत ध्यान से समझते हैं।
.पश्चिम बंगाल सरकार ने 13 जुलाई, 2023 की अधिसूचना द्वारा लीजहोल्ड भूमि को फ्रीहोल्ड भूमि में बदलने की अनुमति दे दी है, जिसमें चाय पर्यटन और संबद्ध व्यावसायिक गतिविधियों के लिए भूमि भी शामिल है। अधिसूचना में कोलकाता की “खासमहल भूमि” और विभिन्न औद्योगिक संपदाओं और पार्कों की भूमि भी शामिल है।
.अधिसूचना निम्नलिखित बताती है:-
99 साल के पट्टेदार से जमीन की मौजूदा बाजार कीमत का 15% शुल्क लिया जाएगा।
30 साल से कम अवधि के पट्टेदार से जमीन की मौजूदा बाजार कीमत का 70 फीसदी लिया जाएगा।
एक बार फ्रीहोल्ड में स्थानांतरित होने के बाद, भूमि के उपयोग से संबंधित किसी भी भविष्य के रूपांतरण को प्रतिबंधित करने के लिए संपूर्ण भूमि अनुसूची को संबंधित भूमि रिकॉर्ड प्रणाली में चिह्नित किया जाएगा। यद्यपि नोटिफिकेशन में चाय बागान की जमीन को अलग रखा गया है, लेकिन भविष्य में उसे शामिल नहीं किया जाएगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है।
.एक बार भूमि की प्रकृति को पैसे लेकर सरकार लीज होल्ड से फ्री होल्ड कर देती है तो जमीन खरीदने वाली कंपनियाँ वर्तमान व्यावसाय को घाटे का सौदा घोषित करके वहाँ दूसरे उद्योग शुरू कर देती है। दुनिया भर में ऐसा ही होता है। इसका सीधा असर उद्योग के अनपढ़ कर्मचारियों पर होता है। ठीक ऐसा ही हुआ था चाँदमुनी चाय बागान में जहाँ आज बड़े-बड़े मॉल में दूसरे बाहरी लोग काम करते हैं और कुछ बगानियारों को सफाई कर्मी का काम मिला है। बागडोगरा एयरपोर्ट को बागान की जमीन दी गई, लेकिन वहाँ बगानियारों को कोई काम नहीं मिला। अशिक्षितों को कभी भी किसी स्किल्ड एक्सपर्ट वाली कुर्सी या रोजगार नहीं मिलती है।
.आजादी के बाद से न तो कांग्रेस सरकार ने न ही वामफ्रंट सरकार ने इतने बड़े पैमाने पर चाय बागानों की जमीन को फ्री होल्ड करने का कुचक्र रचा। लेकिन यह काम वर्तमान सरकार ने 2023 के कानून और नोटिफिकेशन के द्वारा कर दी है। एक बार कानून बन जाए तो उसे रद्द कराना बहुत मुश्किल है। इसे सिर्फ राजनैतिक स्तर पर ही किया जा सकता है।
.लेकिन मुख्य विपक्षी दल बीजेपी जिन्होंने उत्तर बंगाल के अधिकतर सीटों पर जीत हासिल किया था। इस पर मुँह खोलने के लिए भी राजी नहीं है। चाय बागान के कुछ लोगों को छोड़ कर इसका विरोध कोई नहीं कर रहा है। जबकि सबकी बर्बादी तय कर दिया है, इस सरकार के द्वारा पारित कानून ने।
.टीएमसी सरकार ने पहले 2013 में 3% जमीन को चाय बागान में अन्य कार्य करने के लिए अनुमति दी थी। फिर वह 15% जमीन या 150 एकड़ जमीन या 400 बीघा जमीन को चाय कंपनी को टी टूरिज्म या अन्य कार्य के लिए यूज करने का अनुमति दी। 276 चाय बागान 400 बीघा में टूरिज्म और अन्य काम करेंगे तो कितना जमीन बागान से बाहर जाएगा, इसका कैलकुलेश कोई भी कर सकता है। पूँजीपतियों को अधिक सुविधा देने के लिए सरकार ने चाय बगानियारों के क्वार्टर को स्थानांतरित करने की अनुमति भी दे दी है। इसे सफल बनाने के लिए पीछे से चा सुंदरी योजना बनाई गई, ताकि मजदूरों को बेशकीमती जमीन से हटा कर बागान के किसी कोने में कम जगह में हटाया जा सके।
.फिर सरकार ने 176 बागान के सरकारी जमीन पर लगे हुए चाय के फसलों में परिवर्तन लाने के लिए 2023 में लीज होल्ड से फ्री होल्ड करने का कानून ही लेकर आ गई। इन चाय बागानों को पहले ही 400 बीघा तक की जमीन को चाय बगीचे के इतर कार्यों में लगाने की अनुमति मिली हुई है। तराई के कई चाय बागानों के पौधों को उखाड़ा जा रहा है। डुवार्स के भी कॉमर्शियल की दृष्टि से लाभप्रद जगहों में यह काम किया जाएगा। फिलहाल बचे हुए चाय बागान की जमीन भविष्य में पूरी तरह प्राईवेट लिमिटेड में नहीं बदलेंगे, इसकी कोई गारंटी कोई भी नहीं दे सकता है। पूँजीपति नेताओं को चंदे देकर मनचाहा काम करा लेते हैं। शासन प्रशासन में पूँजीपतियों की तूती बोलती है। मजदूर अनपढ़ होने के कारण चीजों को जल्दी से नहीं समझता है और उसे निहित स्वार्थी तत्व हमेशा भ्रमित करके उसका वोट ले लेते हैं और उसी के विरूद्ध में नीतियाँ बनाते हैं। अब बगानियारों के घर भिट्ठा की पूरी जमीन के बदले सिर्फ 5 decimal जमीन का नया फंडा बाजार में आया है। बिना अधिसूचना के बगानियार जमीन को टुकड़ों में बाँटा जा रहा है और भविष्य के लिए स्थायी सिर दर्द पैदा किया जा रहा है।
.टूरिज्म और चाय बागान अलग-अलग कानून से संचालित होते हैं। दोनों प्रकार की कंपनियों का अलग-अलग रजिस्ट्रेशन होता है, टैक्स और नियंत्रण के अलग-अलग कानून लागू होते हैं। टूरिज्म में प्रशिक्षित कर्मचारियों की जरूरत होती है। नये कंपनियों में बगानियारों के रोजगार की कोई गारंटी नहीं है। चाय बागानों के लोगों को सरकारी नीतियों के तहत सस्ते मजदूर में बदलने के लिए उन्हें विभिन्न तरीके से शिक्षा से हतोत्साहित किया गया था। वे अब भी 90% अनपढ़ हैं। वे पूरी तरह स्वतंत्र आर्थिक मॉडल में किसी भी तरह प्रतिस्पर्धा करने लायक क्षमता नहीं रखते हैं। चाँदमुनी में तो सिर्फ एक ही बागान के लोग बर्बाद हुए थे। लेकिन इस बार कितने बागान के कितने लोग बर्बाद होंगे, इसका अनुमान भला कौन लगा सकता है?