प्रकृति की देन है विचारों की भिन्नता

नेह इंदवार

मैं जैसे सोचता हूँ, जरूरी नहीं कि आप भी वैसे ही सोचें।

आप जैसे सोचते हैं जरूरी नहीं कि आपके परिवार के अन्य सदस्य और आपके पड़ोसी भी एक्जैट्क्ली वैसा ही सोचें। आपकी आँखें चीजों को जिस कोण और दृष्टिकोण से देखती हैं, वैसा मैं नहीं देख पाता। मेरा “अंदाज” आपके “अंदाज” का जिगरी दोस्त बनने में हमेशा फिस्सड्डी रहा है। आपके अंदाज़-ए-बयाँ पर इतिहास बन जाता है और मेरे बयान पर कोई “चेहरा-किताब” में पोस्ट तक नहीं होते। जाहिर है कि आपकी मानसिक दुनिया और मेरी सोच की दुनिया में दिन और रात का फर्क है। यही फर्क हमारे सपने, सपनों के संसार और अनुभव की दुनिया में भी हमेशा मौजूद रहता है। हम दोनों कितना भी बैठें साथ और अपनी-अपनी सोच को एक दूसरे के ढाँचे में बिठाने की कोशिश करें। लेकिन जैसे दुपहिया साइकिल का पहिया रॉल्स रॉयस में फिट नहीं हो सकता है, वैसे ही तुम्हारे बुगाटी कार से मेरी पैदल चाल कभी आगे नहीं निकल सकती है। भले ही हम दोनों अपने वाहन की सर्वोच्च गति पर चलने की कोशिश करें। विचारों की भिन्नता कृत्रिम नहीं है, बल्कि यह प्रकृति का ही एक भाग है। प्राकृतिक ने ही हर व्यक्ति को अलग तरह से चीजों को देखने, अनुभव करने, उसका सार निकालने के लिए बौद्धिक क्षमता दिया है। इसीलिए दुनिया की हर कविता और कर कहानी अलग होती है। ये सभी दिमाग के विचारों से सृजित रचनाएँ हैं।

इसका यह मतलब भी नहीं कि बुगाटी के सामने मेरी चाल बेकार है या वजूद हीन है। भई मेरी चाल का अपना स्वतंत्र वजूद तो मौजूद है ही न इस पृथ्वी में ! जाहिर है कि तुम्हारे वजूद की महानता के सामने मेरी वजूद जरूर क्षुद्र है, मगर अस्तित्वहीन तो नहीं न है। तुम्हारी सोच एक सोच ही तो है, वह पत्थर पर लिखी जीवन की अंतिम सत्य तो नहीं।

भई जीवन में सबसे बड़ी चीज विचार जरूर है, लेकिन जीवन से बड़ी तो नहीं 😑हर विचार का अपना जीवन होता है। किसी दिन कहीं उसका जन्म होता है। कभी वह बहुत नन्हा सा होता है। फिर वह खाते पीत स्वस्थ रहते हुए खेलते हुए जवान होता है। जवानी में वह बहुत बलशाली हो सकता है। हो सकता है कि वह अपने बल के बल पर इलाके या दुनिया के किसी इलाके का मालिक बन गया हो, या हो सकता है पूरी दुनिया का सबसे अधिक स्वीकार्य विचार बन गया हो, और बहुत सफल कहलाता हो।

लेकिन दोस्त दुनिया में जितने इंसान हैं उतने ही विचार भी है। संसार में उन्हें फलने फूलने का अवसर भी मिलता है। जाहिर है कि कोई विचार चाहे कितना भी बड़ा हो जाए, उसकी प्रतिक्रिया या प्रतिस्पर्धा में दूसरे विचार भी करोड़ों दिमाग में बादलों की तरह उमड़ते-घुमड़ते रहते हैं। हो सकती है वह पुराने शक्तिशाली विचारों से भी अधिक शक्तिशाली बन कर मानव समाज को मानसिक क्रांति करने के लिए मजबूर कर दे।

इसलिए एक विचार को पकड़ कर इतना इतराना किस बात की ? विचारों की दुनिया भी अजीब होती है। यह रोज बनती है और रोज बिगड़ती है। अधितर विचार और विचारधारा अलग-अलग जानकारियों, अनुभव और पृष्टभूमियों पर आधारित होती है। इसीलिए दुनिया की हर संस्कृति और आचार-व्यवहार में अंतर होता है। हमें बचपन से जो सिखाया जाता है, उसे ही सबसे अधिक श्रेष्ठ और व्यावहारिक समझने की मानसिकता दुनिया में नई नहीं है। किसी विचार या सोच पर जानकारी जैसे ही बदलती है, विचार और सोच भी बदल जाता है। पूँजीवाद का भी कहीं न कहीं जन्म हुआ और वह लोगों में फैल गया। वैसे ही उसके काट के लिए समाजवाद, साम्यवाद आया और वह भी चारों ओर फैल गया। धर्म का जन्म तो कितने युगों से थोक में भाव में हो रहा है। जो धर्म अधिक फैल गया, उसे लोग असली समझने के विचार भी पाल लिए। आज धर्म की काट के लिए पूरी दुनिया में नास्तिकता का आंदोलन चल रहा है। कितने ही देशों में किसी धार्मिक स्थलों में लोग जाते ही नहीं है। यह भी विचारों में हुए परिवर्तन का ही एक रूप है।

जहाँ दो व्यक्ति होंगे, वहाँ दो विचार मौजूद होगा। यही विचार ही पति-पत्नी, भाई-भाई, बहन-बहन, राज्य और देश को अलग-अलग करता है। लंगोटिया यारों के भी विचार एक नहीं होते हैं न ही एक ही कार्य स्थल में कार्य करने वालों के विचार एक होते हैं। विचारों में भिन्नता, मतभिन्नता दुनिया की सबसे बड़ी सच्चाई है। जो इसे समझ नहीं सकता है, उनके दिल में मनमुटाव घर कर जाता है। यह मनमुटाव व्यक्ति के सोच के स्तर को दिखाता और कहता है कि बेटा तुम्हें अभी और परिवक्व बनना है।

विचारों के फर्क से ही कोई जानी प्यारा, जानी दुश्मन बन जाता है और कोई नफरती कीड़ा से मनरूबा और दिलरुबा। कल तक जो दिल के नजदीक रहते थे। वे आज चाईनीज माल हो गए। और हम जो कभी क्रिकेटटर हुआ करते थे, विचार से बॉलीबाल के खिलाड़ी बन गए हैं।

सीखे हुए विचारों से उन्हें प्यार इतना, कि वे दुश्मन बन बैठे हैं यार के। नेह।