शोषित दिमागों की हैकिंग

नेह अर्जुन इंदवार 

मितरों, कल मैने शोषण व्यवस्था में आम जनता को शिक्षा और सम्पत्ति के अधिकार से वंचित करने के षड़यंत्र और पैंतरों पर एक पोस्ट डाला था। उसी कड़ी में आज धूल भरे कुछ नये कोनों की झाड़पोछ करते हैं।

.💐💐मानव इतिहास में एक मानव द्वारा दूसरे मानव का शोषण कब शुरू हुआ इसकी कई अनुमानिक कहानियाँ कही जा सकती हैं। लेकिन स्वतंत्र देशों में भी आमलोगों का शोषण अबाध रूप से क्यों जारी है और अमीरों-गरीबों के बीच विशाल अंतर क्यों है ? यह सुधीजानों के चिंता का विषय है।

.💐💐हर मनुष्य के पास ब्रह्माण्ड की सबसे तेज सृजनशील मशीन यानी दिमाग है। पृथ्वी की सभ्यता के विकास की पूरी कहानी इसी दिमाग ने रची है। सृजनशीलता की इसकी क्षमता असीम है। मुकम्मल शिक्षा इसकी सृजनशीलता की गति को बढ़ाता है। इसकी कार्यशीलता की अपनी प्रक्रिया है।

💐💐 लेकिन यदि इसकी कल्पना-प्रक्रिया क्षमता को बाधित किया जाए तो इसकी अद्भूत क्षमता बेकार हो जाती है। इंसानी दिमागी सोच प्रक्रिया को उसी तरह हैक किया जा सकता है। जैसे कम्प्यूटर की हैकिंग की जाती है। हैक किए गए दिमाग एक डब्बा बन कर रह जाता है।

💐💐सुपर कम्प्यूटर एक सेकेंट में कई हजार खरब गणना कर लेता है। सुपर कम्प्यूटर एक अकेला पीसी नहीं होता है। बल्कि दर्जनों कम्प्यूटरों के नेटवर्क में कार्य करता है। जटिल मानवीय विकास के कार्य भी एक मानव के बस की बात नहीं होती है। प्रायः समस्त अविष्कार, विकास, कच्चे का परिष्कार मानवीय दिमागों के नेटवर्क का ही कमाल है।

💐 💐 याद रखें, शोषण तंत्र का विकास भी शोषकों के चालाक दिमागों के नेटवर्क का रिजल्ट है। सम्पत्ति + अधिकारों के सृजन और सीमित हाथों में श्रृँखलाबद्ध संचय भी नेटवर्क चिंतन से ही होता है। यह शोषकतंत्र का नेटवर्क होता है। हम यहाँ व्यक्तिगत ठगी की बात नहीं कर रहे हैं। बल्कि संस्थागत, नियोजित सामाजिक (आर्थिक) शोषण की बात कर रहे हैं।

💐💐शोषकों के उलट शोषितों की संख्या बहुत अधिक होती है। अर्थात् शोषितों के पास अद्भूत शक्तियों से संपन्न अधिक दिमाग होता है। यदि शोषित अपने दिमागों की सृजन क्षमता की श्रृँखला को सुपर कम्प्यूटर की तरह एक नेटवर्क से जोड़ दे तो इसका परिणाम क्या हो सकता है ?

💐💐अपने राजा के विरूद्ध फ्रांस की प्रजा का विद्रोह, रूस की अक्तूबर क्रांति, उत्तरी और दक्षिणी अमेरिकी राज्यों के बीच गुलामी प्रथा को हटाने और बनाए रखने की लड़ाई, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन, यूरोप का पुनर्जागरण, अफ्रीकी रंगभेद विरोधी आंदोलन या चीन की लाल क्रांति आदि शोषितों के दिमागों के नेटवर्क शक्ति के प्रस्फूटन का परिणाम था। दिमागी नेटवर्क से अथाह ऊर्जा का उत्पादन होता है। उपरोक्त के माध्यम से हम मानवीय सृजन और चिंतन श्रृँखला को समझने का प्रयास कर सकते हैं।

💐💐इन सभी लडाईयों, संघर्षों में अद्भूत रूप से सोच प्रक्रिया, सोच से उत्पन्न फौरी कार्यक्रमों का क्रियान्वयन, श्रृँखलाबद्ध धारा प्रवाह क्रिया-प्रतिक्रिया का समन्वय आदि दिखता है। इन सभी लड़ाईयों में इनके इच्छित लक्ष्यों की ओर ही सभी दिमाग एक ही नेटवर्क में एक ही लक्ष्य के लिए कार्यशील थीं। यदि इनके संघर्ष की नेटवर्क में किसी भी तरह की स्थायी बाधा उत्पन्न हो जाती या नेटवर्क को हैक कर लिया जाता तो हमारा इतिहास आज कुछ और होता। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि मानवीय दिमागों के नेटवर्क क्षमता से हम इच्छित लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं।

💐💐कोई भी क्रांति एक अफरा-तफरी की स्थिति पैदा करती है। लेकिन वास्तविक विकास शांति-समय, दिमागों के नेटवर्क के द्वारा ही प्राप्त होता है। स्वतंत्र देश में कानून और नीति-योजनाओं के माध्यम से क्रांति होती है। लेकिन सदियों से शोषण-तंत्र के छत्रछाया में जीवन बिताने वाले शोषक अपने तंत्र को बचाए रखना चाहते हैं।

💐💐योजनाबद्ध सामूहिक मावनीय क्रिया से राष्ट्रीय सम्पदा का निर्माण होता है। सामूहिक सृजित सम्पदा पर समाज का सामूहिक हक होता है। लेकिन सम्पदा और अधिकार जब कुछ हाथों में सिमट कर रह जाता है, तो वह अन्यायकारी शोषणतंत्र का निर्माण करता है। अन्यायकारी शोषणतंत्र का जारी कहना मानवीयता के विकास के लिए खतरे खड़ी करती है।

💐💐शोषक और शोषित के बीच संसाधनों, शक्तियों, सुविधाओं, अधिकारों के वितरण का ही झमेला नहीं है। बल्कि उसके स्थायी और टिकाऊ उपभोग पर भी झमेला है। शोषित जब अपने अधिकार, सुविधा और सम्पदा की मांग करता है। तो उसे शोषणतंत्र बदनाम करता है। विद्रोही, अराजक का तमगा देता है और सम्पदा के अंश देने से इंकार करता है। शोषित इसे प्राप्त करने के लिए अपने दिमागों को नेटवर्क से जोड़ने की कोशिश करता है।

💐💐तब शोषकतंत्र उसके सक्रिय दिमागी-नेटवर्क में विभाजनकारी वायरस डाल देता है ताकि वह नेटवर्क को बर्बाद कर सके। धर्म, जातिवाद, क्षेत्रवाद, भाषावाद, संस्कृतिवाद के वायरस बड़ी तेजी से शोषित सुपर कम्पयूटर को हैक कर लेता है। उसका नेटवर्क की शक्ति क्षीण हो जाती है या बिखर जाती है। धर्म, जाति, क्षेत्र, भाषा, संस्कृति के लिए पूँजी के संचायक का दिल खोल कर दान-दक्षिणा, कहीं पे नज़र, कहीं पे निशाना ही होता है।

💐💐 अपने आसपास के दूसरे धर्म, संस्कृति, भाषा, जाति के लिए मौजूद पारंपारिक वैनस्य की भावना और उसे हवा देते पूँजी, नीतियाँ, शिक्षा, संपत्ति के अधिकार, समता आदि के लक्ष्य (आर्थिक, राजनैतिक संवैधानिक अधिकार) के लिए बनने वाले दिमागों के नेटवर्ग में निरंतर बाधा उत्पन्न करता रहता है।

💐💐 बहुधा ऐसी बाधाओं को स्वाभाविक, पारंपारिक या ऐतिहासिक मान लिया जाता है। शोषकतंत्र इसे स्वाभाविक मानने के पैंतरे चलते रहता है। उसके पास शिक्षित चालाक दिमागों के साथ मीडिया और साहित्य भी होता है। वे भ्रमजाल के निर्माण में कामयाब होते हैं। इससे पारंपारिक मानसिक साम्राज्यवाद सुदृढ़ होता हैै। शोषितों में विभाजन बढ़ता है। वे इससे पार नहीं जा पाते। उनकी लडाई कमजोर हो जाती है। शोषित जमात इसे अपनी नियति मान लेता है। वह उस धर्मजाल से निकल नहीं पाता है, जो उसके दिमागी नेटवर्क को बीमार और पंगु बनाते हैं।

💐💐धर्म, संस्कृति, भाषा, जाति के वायरस से बीमार और कमजोर सोच ब्रह्मांड के सबसे नयाब दिमागों की सृजनशीलता को शोषण तंत्र के विरूद्ध आवाज़ उठाने, गंभीर चिंतन करने, संगठित होने से रोकता है। ये मूलतः शिक्षा, सम्पत्ति, अधिकार आदि पर कुंडली मार कर बैठे हुए शक्तियों के द्वारा खड़ी की गई षड़यंत्री बाधाएँ और हैकिंग का ही काम करता है।

💐💐भारतीय स्वतंत्रता के बाद सृजित राष्ट्रीय सम्पदा का वितरण व्यवस्था ऐसी रखी गई कि 70 प्रतिशत धन सिर्फ 100 परिवारों में इकट्ठा होकर रह गया। लेकिन आम जनता की चिंतन इसकी वैधता की भुलभुलैया में कभी अंदर जाना नहीं चाहती है। क्योंकि उनके सोचने की धारा पर अर्थात् दिमागों के सामूहिक चिंतन धारा पर पारंपारिक लेकिन कृत्रिम बाधाएँ खड़ी हैं।

💐💐शोषितों को विश्वास दिलाया जाता है कि उनकी धर्म, जाति, क्षेत्र, भाषा-संस्कृति खतरे में है। उनकी पहचान और वजूद खत्म होने वाली है। दिमागों के श्रृँखलाबद्ध सोच क्रिया-प्रतिक्रिया की हैकिंग के लिए ऐसी भावनात्मक वायरस हमेशा भारतीयों को रोगग्रस्त रखता है और भारतीयों की सारी आत्मा और ऊर्जी उन्हें खतरे से बचने में लगी हुई होती है। किसी का भी ध्यान संवैधानिक देश में समस्त देशवासियों के संप्रभुसत्ता के सामूहिक ऊर्जा से प्राप्त राष्ट्रीय धन क्यों 100 परिवारों के मुट्ठी में कैद है, पर नहीं जाता है। पूरा देश किसी रोटी चोर की पिटाई पर ताली पिटता है। पूरा देश राजनैतिक, आर्थिक शोषण पर चुप रहता है और सदा परिवर्तनीय अमूर्त छायाओं के पीछे भागता रहता है। न संसद में इन बातों पर विस्तृत चर्चा होती है, न संचार माध्यमों पर। क्योंकि चर्चा करने वालों का वर्ग चरित्र शोषकतंत्र का हिस्सा बन कर रह जाता है।

💐💐भारत जैसे विशाल देश में रेल, सड़क, यातायात, जल, जंगल, जमीन, आकाश आदि पर सरकार का कब्जा है। हर खर्च पर नागरिक टैक्स चुकाता है। हर बड़े कार्य और नीति पर सरकार का कब्जा है। लेकिन शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा पर उनका एकक्षत्र एकाधिकार नहीं है। हर  आम भारतीय शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा की प्राप्ति के लिए जिंदगी भर संघर्ष करता है। जबकि कल्याणकारी संविधान के अधीन इन दोनों सेवाओं को राज्य के अधीन रहना अनिवार्य था। अनेक देशों में इस सेवाओं के सरकारीकरण से उन देशों की किस्मत बदल गई है।  देश के गरीब और आमजनता की हालत किसी विकसित देश सी हो जाती यदि सरकार ये दोनों सेवाओं को अपने अधीन रखती और उसकी गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए कठोर कानून बनाती।

💐💐लेकिन आजाद भारत में सरकार ऐसी अनिवार्य सेवाओं के लिए कभी कोई कठोर कानून नहीं बनाती है। लचर कानून भी शोषण की कहानी मे मुख्य भूमिका निभाता है। देश में रोटी चोरी करने वाली की क्रिमिनल एक्ट में सुनवाई होती है, लेकिन हजार करोड़ लूटने वालों पर सिविल कोर्ट में मुकदमा चलता है। भारत में सौ करोड़ दिमागों के श्रृँखलाबद्ध नेटवर्क में स्थायी हैकिंग के कारण जनता इन बातों पर कभी गौर नहीं कर पाती है।

💐💐जब तक दिमागों के हैकिंग और सृजनात्मक- चिंतन-बाधा के रास्तों पर पड़े हुए बाधाओं को हटाए नहीं जाएँगे। शोषक और शोषित की कहानी का एण्ड नहीं होगा।