छलिया नेताओं से छुटकारा

आदिवासी नेताओं के हजारों करोडों के घोटालों के नित नये चर्चे से आदिवासी समाज सचमुच ही किंकर्तव्‍यविमुढ् है। पूरी दुनिया में आदिवासियों को अत्‍यंत गरीब‍ दिखाया जाता रहा है। लेकिन यहॉं तो आदिवासी नेतागण बडे-बडे उद्योगपतियों को मात दे रहे हैं। इनके पूँजी निवेश से किसी आदिवासी को रोजगार तो नहीं मिला, किन्‍तु अनेक गैर-आदिवासी जरूर रोडपति से करोड्पति बन गए। आदिवासियों के हाथों में कुछ रूपल्‍ली आया तो नहीं, लेकिन आदिवासियों के हिस्‍से में बदनामी और आमलोगों का हिकारत जरूर मिल रहा है। आमतौर से आदिवासियों के लिए सहानुभूति दिखाने वाले लोग ऐसे निगाहों से ताक रहे हैं जैसे हर आदिवासी बेईमान और अमीर हो गया हो। ऐसे में आदिवासी समाज को कमोबेश ईमानदार मानने वालों के विचारों में परिवर्तन नजर आए तो इसमें आश्‍चर्य नहीं होना चाहिए।

ईमानदार समाज से निकलने वाले कई आदिवासी नेतागण तुरंत बेईमान बन जाते हैं और गैर-आदिवासी समाज के लटके-झटके अपना कर सिर्फ स्वंय की भलाई में लग जाते हैं। ऐसे आदिवासी नेताओं के कारण ही आदिवासियों की हालत आज भी जस के तस है। अभी झारखण्‍ड में फिर चुनाव होने जा रहा है। पता नहीं कितने नेतागण इसी तरह भ्रष्‍टाचार के बल करोडपति होने के सपने लेकर आ रहे होंगे। समाज सेवा से ज्‍यादा स्‍वंय सेवा के मिशन लेकर आने वालों का समाज में कोई स्‍थान नहीं होना चाहिए। ऐसे नेताओं को पहचानना कोई बहुत मुश्किल काम नहीं है। बेईमान नेताओं का आदिवासी समाज में स्‍थान ही नहीं होना चाहिए। ऐसे नेताओं से समाज का कभी भी भला नहीं होगा।

इन सबसे छुटकारा पाने का एक ही तरीका है कि चुनाव में आ रहे सभी नेताओं का महीने में एक बार पॉलिग्राफी टेस्‍ट अर्थात झूठ पकडने वाली मशीन से जॉच की जाए। आज चुनाव के पूर्व जनता को चाहिए कि वे ऐसे ही नेताओं को वोट दें जो पॉलिग्राफी टेस्‍ट देने के लिए सहर्ष तैयार हो और इस संबंध में शपथपत्र देने के लिए तैयार हो। हलांकि भारत में पॉलिग्राफी टेस्‍ट को कानूनी मान्‍यता प्राप्‍त नहीं है, लेकिन झारखण्‍ड विधानसभा इस संबंध में पहल कर इसे कानूनी जामा पहना सकता है। इजरायल जैसे अत्‍यंत छोटे आकार का देश पॉलिग्राफी जैसे तकनीकी को अपना कर चारों ओर से घिरे दुश्‍मन देशों के बीच अपना अस्तित्‍व बचा कर रखा है। झारखण्‍ड का अस्तित्‍व भी भ्रष्‍टाचारियों से बचाना है और इसमें किसी भी तरह की चूक नहीं होनी चाहिए।

जिन नेताओं ने भारी भारीभरकम रकम लेकर सरकार में रहते हुए जो भी महत्‍वपूर्ण निर्णय लिए हैं, उनकी समीक्षा की जाए और सभी तरह के ठेके और लीज दिए गए खनिज खानों की मंजूरी को रद्द किया जाए। सरकार में रहते हुए उनके द्वारा सम्‍पादित किए गए तमाम तरह की प्रक्रिया और फाइलों की जॉच की जाए और उनमें दिए गए विवरणों को सार्वजनिक किया जाए। घोटालों में शामिल तमाम अफसरों का भी पोलिग्राफ टेस्‍ट कराया जाए और उन्‍हें भी सेवा से बर्खास्‍त किया जाए और उन पर मुकादमा चलाया जाए।

सन् 2000 में झारखण्‍ड राज्‍य बनने पर समस्‍त आदिवासी समाज में खुशियॉं छा गई थी। लोगों को आशा थी कि एक दशक होते होते झारखण्‍ड एक खुशहाल राज्‍य बन जाएगा। जनता की स्‍वशासन की आकांक्षाऍं पूरी होंगी। हर गरीब को प्रगति करने का मौका मिलेगा। प्राकृतिक धनधान्‍य से परिपूर्ण राज्‍य में हर गरीब और आम जनता को राज्‍य के प्राकृतिक संसाधनों का लाभ मिलेगा। लेकिन यहॉं तो जो भी राजनेता बन गया वह जनता की आशा और संसाधनों के लूट में शामिल हो गया। अभी तो सिर्फ कुछ नेताओं का ही नाम बाहर आया है। यदि सभी नेताओं की सम्‍पत्ति का आकलन किया जाए तो अधिकतर नेताओं के पास आय से अधिक सम्‍पत्ति प्राप्‍त होंगी। अभी चुनाव का मौसम आया है। नेतागण एक एक वोट के लिए भीख मांग रहे हैं यही वह मौका है जब जनता अपने अधिकार और क्षमता का प्रदर्शन कर सकती है और तमाम रंगे सियारों को सबक सीखा सकती हैं।

देश में जब लोकतंत्र की व्‍यवस्‍था है तो जाहिर है कि चुनाव के बाद नयी सरकार बनेगी और सरकार में बैठे नेतागण्‍ बडे-बडे फैसले लेंगे। आज भी तमाम सुधारों के बाद भी शासन में पारदर्शिता की कमी है और इसी कमी का लाभ नेतागण उठाते हैं। भ्रष्‍टाचार की संभावना को सभी तलाशते हैं और यह भ्रष्‍टाचार केन्‍द्र सरकार के तंत्र में भी गहरे तक जड जमा चुका है। केन्‍द्र सरकार के स्‍तर पर भी भ्रष्‍टाचार पर पूरी तरह अंकुश लगाने की कभी कोशिश नहीं की गई है। एक-एक मामले पर सीबीआई जैसी संस्‍था को सरकार से मंजूरी मिलने में महीनों और सालों लग जाते हैं। जाहिर है कि सभी भ्रष्‍टाचारी मौसेरे भाई होने की भावना से एक दूसरे को परोक्ष मदद पहुंचाते हैं। आज इसी भावना को ही तोडने पर भ्रष्‍टाचार के नित नये मंजिलों पर पहॅुचते जाल को तोडा जा सकता है।

आदिवासी समाज आज किंकर्तव्‍यविमुढ जरूर है लेकिन अपने ही समाज के छलिया लोगों से निपटने के लिए अभी ही कमर कस सकता है। समाज में उठे हलचल को एक निश्चित दिशा प्रदान करके एक ऐसी सामाजिक और नैतिक व्‍यवस्‍था को मंजूरी दी जा सकती है जिसका उल्‍लंघन करना नेताओं को भारी पड सकता है।

छलिया नेताओं से छुटकारा” पर 4 विचार

  1. My heartiest congratulations for the formation & recognition of Progressive Tea Workers Union.It is a historical achievement of the adivasi community of North Bengal, engaged and employed in tea garden for the last 150 years.It is an irony that 98 % adivasi labour community has been till date “leaderless” in the grassroot level.Adivasi vote and adivasi note (chanda) was being collected and used by other leaders.
    It is also a fact that the adivasi labour is in great demand for the tough job at the cheapest wage..kathin kaam aur kam dam ke liye adivasi jindabad.

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  2. Muktiji,

    It’s the heartiest news indeed. Formation of Progressive Tea Workers Union is a remarkable achievement for the Jharkhandi tea laboures. It may be worked as a instrument of thrust giver. However, it will take time to get a tasteful fruit. A determined, informed and honest leadership could move the things towards a positive direction. We hope things will move in right direction and the smile will surface at the faces of people of Dooars and Tarai.

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  3. यहाँ तो यह हाल है कि तू डाल डाल तो मैं पात पात. हम किसी से कम नहीं – अजीब सी होड़ लगी है!
    काश, यह होड़ सकारात्मक काम-काज की ओर लगता तो आदिवासियों की कायापलट हो जाती.

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    • प्रिय होरो साहब,
      प्राकृतिक रूप में नेतृत्व के गुणों से सम्पन्न व्यक्ति ही समाज और देश का नेतृत्व कर सकते हैं। नकली गुणों से ओतप्रोत व्यक्ति जनता के साथ तू डाल–डाल, मैं पात–पात का खेल ही खेलता है। ऐसे लोग चार दिन की चाँदनी फिर अंधेरी रात ही होते हैं। इतिहास ऐसे लोगों को कूड़े में फेंक देता है।

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