सोेशल साईटों से लिखें खुद का इतिहास

किसी देश में सरकार सिर्फ समाज और व्यवस्था को सुव्यवस्थित रूप से चलाने का एक तंत्र भर होता है। सरकार न तो नागरिकों का मालिक होता है और न ही जनता उसकी प्रजा।

लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता अपनी ‘मानवीय सार्वभौमिकता (अधिकार) को  संसद को इस बिना पर सौंपता है कि वह जनता के द्वारा सौंपे गए सर्वभौमिकता के अधिकारों का उपयोग करते हुए देश को सुचारू, सुव्वयस्थित रूप से चलाए और जनता के कल्याण, सुरक्षा, विकास आदि के लिए जो भी जरूरी हो वह सार्वजनिक सहमति (संसद और विधान सभाओं) के माध्यम से करे।  सरकार जनता के हित में कानून बनाए और उन कानूनों का पालन भी निश्चित करे। यदि किसी कानून से जनता का अहित होता है तो वह उस कानून को निरस्त करे। 

सरकार जनता का मालिक नहीं होता है, बल्कि जनता उसे पूरे देश के तंत्र को चलाने के लिए चुनाव के माधय्म से नियुक्त करती है। सरकार जनता का एक निरंतर चलने वाला ऐसा तंत्र होता है जिसे पाँच वर्षों तक चलाने के लिए प्रतिनिधियों का चुनाव करके देश की बगडोर सौंपता है। सरकार देश को चलाने के लिए स्वीकृत किए गए एक तंत्र भर होता है। जबकि सरकार को संचालित और नियंत्रित करने वाले जनप्रतिनिधि  सही मामले में जनता के सेवक होते हैं।

निरंकुश बने जनप्रतिनिधि जनता के शांतिपूर्ण प्रदर्शन, विरोध, बंद, हड़ताल का विरोध करते हैं। जबकि सच्चे लोकतंत्र में जनता के आकांक्षाओं और इच्छाओं का सम्मान किया जाता है। लोकतंत्र में निष्पक्ष चुनाव, जनमत संग्रह आदि ऐसे उपकरण हैं जो देश के जनता की सार्वभौमिकता के अधिकार की रक्षा करते हैं। 

निरंकुश बन गए जनप्रतिनिधियों के सरकार का “बंद” और “धरना” के माध्यम से विरोध करना जनता का परम लोकतांत्रिक अधिकार है।

दिकुओं द्वारा संचालित मीडिया झारखंडी समाज का स्वाभाविक विरोधी है और वे मीडिया कम गैर-झारखंडियों का हित रक्षा करने वाली वास्तविक ताकतें हैं।

स्वाभाविक है कि वे झारखंडी हित और अधिकार की लड़ाई को कमजोर करने की हरचंद कोशिश निर्लज स्तर पर उतर कर करेंगे।

लेकिन आज वैकल्पिक मीडिया की कमी नहीं है। एक दिन पूर्व ही आप वास्तविक स्थिति को दुनिया को बता सकते हैं। अखबारों के प्रभाव (सूचना देने की शक्ति) को फेल  करना आपके बाएँ हाथ का काम है।

फेसबुक और सामाजिक मुद्दों को गंभीरता से उठाने वाले अनेक ब्लॉग हैं जिसमें जमीनी स्तर की खब़रों को तुरंत प्रकाशित, प्रसारित और प्रचारित किया जा सकता है।

आप चाहे बंद में सक्रिय शामिल हों या न हों, लेकिन जमीनी स्तर की खब़रों को देश दुनिया के चप्पे चप्पे तक पहुँचाने में शामिल होकर आप सिटीजन पत्रकार बन सकते हैं और समाज के हित में अमूल्य योगदान दे सकते हैं।

यदि आपके पास साधारण मोबाइल है तो आप “बंद” सहित तमाम तरह के फोटो खिंच कर तुरंत फेसबुक में पोस्ट कर सकते हैं।

यदि आपके पास स्मार्ट फोन है तो आप तुरंत दो, चार, पाँच मिनट का वीडियो बना कर फेसबुक में पोस्ट कर सकते हैं। एडिटिंग करने की जरूरत नहीं है, दूर दराज के झारखंडियों और दूसरे क्षेत्रों में “बंद” में शामिल कार्यकर्ताओं को आप के वीडियो से बहुत मदद मिलेगी।

याद रखें दिकू आपको असफल सिद्ध करने का प्रयास करेंगे लेकिन आपकी सैकड़ों तस्वीर और वीडियो इतिहास के लहमों को सदा के लिए कैद करके इतिहास रचेगा।

खुद अपने, अपने समाज और अपनी भाषा-संस्कृति के वातावरण से संचित इतिहास का लेखन और चित्रांकन करना आपका हक और कर्तव्य है। 

जितने भी लोग फेसबुक में मौजूद रहेंगे, उनका कर्तव्य होगा कि वे सारे तस्वीर और वीडियो को तुरंत अधिकतम शेयर करें और दिकुओं के मीडिया को परास्त करें।

लड़ाई सिर्फ लाठी और बंदूक के बल पर ही सदा नहीं लड़ी जाती है। सफलता सिर्फ दिमाग के रास्ते मुस्काते हुए आती है। सफलता का स्वागत कीजिए, दुनिया आपके कदमों पर होगी। नेह इंदवार