नेह इंदवार
डुवार्स भारत के पश्चिम बंगाल के उत्तर-पूर्व में एक क्षेत्र है, जो अपने जंगलों, वन्य जीवन और चाय बागानों के लिए जाना जाता है। यह भूटान और भारत के पूर्वोत्तर राज्यों का प्रवेश द्वार भी है। जंगली जानवर अक्सर जगल से निकल कर स्थानीय ग्रामीण इलाकों में आते है और फसलों और नागरिक सम्पत्तियों को नुकसान पहुँचाते हैं। जंगली हाथी, चीता, बाघ, बाईसन वगैरह के हमलों से अक्सर डुवार्स के लोग जान गँवाते हैं। अधिकतर लोग ऐसी खबरों पर बहुत अधिक ध्यान नहीं दे पाते हैं।
लेकिन इस तरह के हमलों और जान गँवाने के पीछे कई कारण हैं, जिन्हे स्थानीय जनता, प्रशासन और शासन को जानना चाहिए। डुवार्स के विस्तृत जंगलों को राष्ट्रीय अभ्यारण घोषित किए गए हैं और यहाँ बाहर से लाकर बाघ, हिरण आदि को छोड़े जा रहे हैं। लेकिन देखा जाए तो फारेस्ट विभाग की गफलती से यहाँ के जंगल खत्म होते जा रहे हैं। जंगलों के पेड़ों की अंधाधुंध कटाई और दोहन से जंगल ऐसे नहीं रह गए हैं कि वहाँ जंगली जानवरों के लिए खाने के लिए पर्याप्त भोजन उपलब्ध हों।
जंगलों में जब बाहर से बाघ और अन्य जंगली जानवरों को लाए जा रहे हैं तो इसके लिए सरकार भारी भरकम बजट भी देती है। लेकिन ये बजट कहाँ खर्च किए जा रहे हैं या जाँच का विषय है। जंगल में जंगली जानवरों के खाने के लिए विभिन्न प्रकार के लाखों पेड़ पौधे आदि लगना चाहिए ताकि वे भोजन की खोज में जंगल से बाहर न आएँ और समाज को नुकसान न पहुँचाएँ। लेकिन लगता है बजट को यहां खर्च नहीं किया जा रहा है। यहाँ के जंगल उजाड़ नज़र आते हैं और जानवरों को खाने के लिए उन्हें उचित और पर्याप्त भोजन नहीं मिल पाता है। फलतः बंदरों से लेकर हाथी, चीता, बंदर नियमित रूप से बाहर आकर यहाँ के ग्रामीण अर्थव्यवस्था को खत्म कर रहे हैं और उन पर हमले भी कर रहे हैं। बंदरों के उत्पात से यहां के लोग अपने खेतों में फसल, सब्जी वगैरह उगा नहीं पा रहे हैं।
कई लोग सवाल भी उठाते हैं कि कहीं यह कोई षड़यंत्र तो नहीं है कि यहाँ के जंगलों को खत्म कर दो और इतने जंगली जानवर यहाँ लाओ कि यहाँ के बाशिंदों की जिंदगी हराम हो जाए, स्थानीय ग्रामीण व्यवस्था, फसल, पेड़ पौधे खत्म हो जाएँ और यहाँ के लोग गरीब होकर शहरों की ओर पलायन कर जाए। यदि ऐसा नहीं है तो सरकार बताए कि क्यों खत्म हो रहे जंगलों में नये रोपन नहीं किए जा रहे हैं? अलिपुरद्वार से निकलने वाले हाईवे के दोनों किनारे जंगल के बदले किसी उजाड़ सा उपवन लगता है। यह एक दिन की स्थिति नहीं है, बल्कि यह कई वर्षों से इसी तरह रह गया है।
सरकार को चाहिए कि वे सीबीआई जैसी किसी संस्था से यहाँ के जंगलों का ऑडिट कराए और इसकी जाँच करके समस्या का निराकरण करे। जिस दिन लोग जंगली जानवरों से तंग आ जाएँगे, उस दिन जनता उन्हें नुकसान पहुँचाना शुरू कर देंगे। सरकार, वन विभाग और केन्द्र सरकार को इस बारे तुरंत कदम उठाना चाहिए।