मानसिक साम्राज्यवाद

नेह अर्जुन इंदवार 

💐💐किसी व्यक्ति का आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, मानसिक शोषण क्यों होता है ? या कहें किसी समाज, वर्ग या क्षेत्र का शोषण क्यों होता है?

💐💐व्यक्ति जब दिमागी और शारीरिक रूप से पंगु होता है तो सक्षम व्यक्ति या समूह या तंत्र कमजोर व्यक्ति का शोषण करता है। शोषण के केन्द्र में स्वार्थ होता है। स्वार्थी त्तत्व कमजोर के शोषण में अपना फायदा देखता है।
💐💐
शोषण के अनेक रूप होते हैं। सभी को पहचानना आसान नहीं है। लेकिन जब किसी एक के स्वार्थ के कारण दूसरे की कहीं न कहीं कोई हानि होती है तो विवेकशीलता के माध्यम से शोषण को पहचाना जा सकता है।
💐💐
कोरोना वायरस से हमें हमारा विश्वास, प्रार्थना, मंत्र बचाएगा। ऐसा बोलने वाले यदि समाज में मान-सम्मान वाले विश्वासपात्र होते हैं और लोग स्वाभाविक रूप से ऐसे लोगों पर दिल से विश्वास करते हैं तो समझ लीजिए कि ऐसे लोग दूसरों की जान लेने तक के स्वार्थी होते हैं। ऐसी घटनाओं का संबंध मानसिक साम्राज्यवाद से होता है।
💐💐
मानसिक शोषण के ढाँचा या साम्राज्यवाद का विकास अधिकतर धार्मिकता के रास्ते किया जाता है। धर्म के मामले पर लोग धर्म के ठेकेदारों, नकली धार्मिक तत्वों पर आँख बंद करके विश्वास करते हैं और वे अपने धर्म की प्रभुसत्ता और इसके प्रभावशीलता के स्थापित स्वार्थ को अक्ष्क्षुण बनाए रखने के लिए ऐसी बातें करते हैं। देश में तंत्र विशेष, धर्म विशेष या संगठन विशेष के कट्टरपन के शिकार व्यक्तियों की मानसिक दशा पर गंभीर विश्लेषण करके इसे पूरी तरह समझा जा सकता है। इंटरनेट के माध्यम से ऐसी अध्ययन के लिए लाखों साम्रगी जुटाया जा सकता है। लेकिन आपको इसके लिए अपने कुकून से बाहर निकलना होगा।
💐💐
अवार्चीन युग में बादशाह, चक्रवर्ती राजाओं द्वारा स्थापित किए जाने वाले साम्राज्य टूट कर बिखेर गए हैं। लेकिन साम्राज्यों के निर्माण बंद नहीं हुए हैं। हमारे चारों ओर अनेक तरह के साम्राज्य कार्यरत्त हैं, जो हमारे दैनिक जीनव को अंदर तक प्रभावित करते हैं।
💐💐
साम्राज्यों के सृजन के तरीके बदल गए हैं। वैश्विक अर्थ व्यवस्था में पूँजीपति अपनी दक्षता के क्षेत्र में साम्राज्य स्थापित करने की जी तोड़ कोशिश करते हैं और साम्राज्य को स्थापित करने के लिए मार्केटिंग का सहारा लेते हैं। वे अपने पूँजी के बल पर अपने वर्ग के लिए एक हौवा-ढाँचा खड़े करते हैं। इसका प्रभाव शासन-प्रशासन के हर क्षेत्र में घुसपैठ कर लेता है। हवाई जहाज से कोरोना लेकर भारत आने वालों के विरूद्ध सरकार कोई कठोर कारगर कार्रवाई क्यों नहीं कर पायी, इसको समझने के लिए पूँजी के प्रभाव और हौवा को समझने की जरूरत है। दूसरी ओर गरीबी पर पूरी ताकत से पड़ते लठियों के बछौर की तुलना एयरपोर्ट पर मिले पूँजीवाद के स्वागत प्रभाव से करें।
💐💐
राजनीतिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, भाषाई, मानसिक (भारत में जातिवाद की) साम्राज्य कैसे स्थापित होती है, इसको समझने के लिए भारतीय राजनीति पार्टियों के कार्यकलाप, भारत में चल रहे धार्मिक और सांस्कृतिक संगठनो की गतिविधि, साहित्य, मीडिया में गुंफित विचारधारा आदि को जानने, समझने और उनके विश्लेषण करने की जरूरत है।
💐💐
वर्तमान युग में सबसे अधिक असरदार और कामयाब मॉडल मानसिक साम्राज्य की स्थापना है। इसके माध्यम से मनचाहे आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृति, भाषाई, साम्राज्य स्थापित किए जा सकते हैं। मानसिक साम्राज्य की स्थापना के लिए जरूरी होता है, व्यक्ति के सोचने, समझने की शक्ति को एक खास उम्र से पकड़ा जाए, उसे खास सूचना, जानकारी, शिक्षा और मूल्य से सराबोर किया जाए। सूचना, मूल्य और विचारधारा की बमबारी से अपने लक्षित वर्ग को कायल कर दिया जाए। इस तमाम क्रिया-प्रक्रिया के लिए आधुनिक संचार के साधन इसके सबसे असरकार उपकरण हैं। इसके लिए जरूरी है कि इन साधनों पर अपनी पकड़ को बेरहम किया जाए। ये साधन किसी राष्ट्र के गले की हड्डियाँ होतीं हैं। जिसने भी इसे पकड़ा वह सामाज्यवाद का बादशाह बन जाता है।
💐💐
भारत में मीडिया के माध्यम से अपने प्रभुक्षेत्र, प्रभावशीलता, विचारों, कार्यकलापों को कैसे खास उम्र के दिमागों में थोपा जाता है और उसका प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लाभ उठाया जाता है। इसे समझना बहुत मुश्किल नहीं है। बस आपको अध्ययनशील, विचारशील होने की जरूरत होगी।
💐💐
अपने लक्ष्यों को हासिल करने के लिए कैसे-कैसे पैंतरे लिए जाते हैं। आलोचना, समालोचना, खुले विचारों की स्वतंत्रता को कैसे बाधित और प्रतिबंधित किया जाता है और विशेष रूप से तैयार साम्रागी को कैसे खास लोगों के दैनिक जीवन की सोच के दायरे में अनवरत लाया जाता है। इसे समझना भी बहुत मुश्किल नहीं है।
💐💐
अभिव्यक्ति की अबाध स्वतंत्रता, साम्राज्यवाद की स्थापना के लिए ऊर्जा लगा रहे लोगों के लिए खतरे की घंटी होती है। इसलिए वे ऐसी स्वतंत्रता की निंदा करते हैं और साम-दाम-भेद के दम पर उन्हें नियंत्रित करने की कोशिश करते हैं।
💐💐
जिस समाज में वैचारिकी स्वतंत्रता होती है, वह समाज चलायमान होता है, और जिस समाज में आलोचना, समालोचना, निंदा जैसे नये मूल्यवर्धक प्रक्रियाओं को हतोत्साहित किया जाता है। वहाँ भेड़ों की एक ऐसी नस्ल तैयार होती है, जो देखने में तो मनुष्य होते हैं। लेकिन वे स्वार्थी लोगों के द्वारा नियंत्रित समूह होते हैं। फिल्मों के जोंबी के देखकर आप अधिक स्पष्ट हो सकते हैं।
💐💐
कोरोना के काल में ऐसे समूहों की बहुत आसानी से पहचान की जा सकती है।