बागान घर का पट्टा अधिकार

👀🌷#Kind_Attention_Dooars_Terai :- ( लेख लम्बा है लेकिन #Land_Patta के लिए पढ़ना बहुत जरूरी है)

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नेह इंदवार

👉 डुवार्स और तराई के करीबन 300 चाय बागान 140,000 हेक्टेयर भूमि में फैला हुए हैं। अधिकतम भूमि का असली मालिक पश्चिम बंगाल सरकार है, और चाय बागानों को #चाय_की_खेती के लिए 30 वर्ष के लीज पर जमीन देती है। इसके अलावा भी अनेक चाय बागान प्रबंधनों ने आदिवासी-नेपाली कृषकों को बहला-फुसला कर उनकी भूमि को अवैध रूप से चाय बागान में मिला लिया है और चालाकी से उन्हें स्वतंत्र कृषक से चाय बागान का मजदूर बना दिया है। अनेक चाय बागान अपनी पूरी लीज जमीन में चाय की खेती करने में असमर्थ हैं, वहीं अनेक बागान लीज से अधिक भूमि पर चाय की खेती कर रहे हैं। जमीन लीज शर्तों के अनुसार यदि कोई कंपनी किसी लीज भूमि पर पाँच वर्षों के भीतर चाय की खेती नहीं कर पाता है तो वह जमीन अपने आप सरकार के खाते में चली जाएगी। लेकिन कई बागान 50-100 वर्ष बाद भी मजदूरों से धान फसल वाले खेतों को छीनने की कोशिश करते रहते हैं।

. 🍀👉राज्य सरकार की नीतियों के अनुसार सरकारी भूमि का अबंटन कृषि और आवास के लिए दिया जा सकता है। आइए देखते हैं कि कानून में भूमि संबंधी क्या प्रावधान है ?

. 🍀आवासहीन, भूमिहीन, गरीब जनता, जिनका आवास के लिए अपना कोई भूमि नहीं है, इसके अलावा जिनके पास कृषि कार्य के लिए भी भूमि नहीं है, के लिए The West Bengal Land and Land Reforms Manual कहता है :- (देखें West Bengal Land and Land Reforms Manual Chapter XIII- Settlement of agriculture at the disposal of government) Section 190 कहता है :-

👉“The area of land that may be settled with a person for the purpose of homestead having no homestead of his own shall not exceed 5 cottahs or 0.0335 hectare. अर्थात् जिस व्यक्ति के पास अपने आवास के उद्देश्य के लिए कोई आवासीय भूखण्ड नहीं है, उन्हें अधिकतम #5 कट्टा (5 cottahs or 0.0335 hectare) भूमि आबंटित किया जा सकता है।

. 🍀👉लेकिन इसी कानून के सेक्सन 193 (नीचे अंग्रेजी में पढ़ें) के तहत कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति या ऐसे किसी भी व्यक्ति के परिवार के सदस्य के साथ जो किसी भी व्यवसाय, व्यापार, उपक्रम, निर्माण, कॉलिंग, सेवा या औद्योगिक व्यवसाय में लगे हुए हैं या कार्यरत हैं, को कोई भूमि आबंटित नहीं की जाएगी। हालांकि यह एक #खेतिहर_मजदूर, कारीगर या मछुआरों पर लागू नहीं होता है।

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👉Section 193 कहता है :- no land can be distributed under sections 49 (1) any person or with a member of the family of any such person who is engaged or employed in any business, trade, undertaking, manufacture, calling, service or industrial occupation. This does not, however, apply to an #agricultural_labourers, artisan or fishermen.

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👉चाय बागानों की सरकारी लीज भूमि के संभावित आबंटन के विरोधी West Bengal Land and Land Reforms Manual Chapter XIII के इस प्रावधान का तर्क देते हैं।

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👉वहीं राज्य West Bengal Estate Acquisition Act, 1953, के अनुसार –“The land can only be leased out for #tea_cultivation. The lessee or the company, without reducing the Plantation Area, may use the land for horticulture and growing medicinal plants on an area not more than 3 per cent of the total grant area of the garden.

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👉अर्थात् #चाय_की_खेती के लिए भूमि को केवल पट्टे पर दिया जा सकता है। प्लांटेशन एरिया को कम किए बिना पट्टेदार या कंपनी, बागवानी के लिए भूमि का उपयोग कर सकती है और बगीचे के कुल अनुदान क्षेत्र का 3 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र पर औषधीय पौधों (के एरिया) को नहीं बढ़ा सकती है।

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👉इस कानून में साफ कहा गया है कि सरकार #चाय_की_खेती के लिए भूमि को पट्टे पर देती है। यहाँ जमीन किसी व्यापार, व्यवसाय, विनिर्माण आदि के लिए नहीं दी जाती है। चाय बागान को #चाय_की_खेती_कहा_गया है। चाय मजदूर भी चाय के खेतों में काम करने वाले #खेतीहर_मजदूर हैं।

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👉उपरोक्त दो अनुच्छेद से यह स्पष्ट है की चाय बागान के औद्योगिक कार्यकलापों को सरकार #एग्रीकल्चर_सेक्टर के कार्यकलाप मानती है। चाय बागान के लिए एरिया में 03% से अधिक भूमि में चाय के सिवाय और किसी भी अन्य नगदी फसलों को नहीं उगाया जा सकता है। 97 % क्षेत्र को चाय उत्पादन के लिए उपयोग करना बाध्यकारी रूल्स है।

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👉पुनः आईए देखते हैं कि पश्चिम बंगाल सरकार की नजरों में चाय बागान कौन से सेक्टर का कार्यकलाप है ? 30 जनवरी 2018 को पश्चिम बंगाल राज्य के वित्त मंत्री श्री अमित मित्र का पश्चिम बंगाल विधानसभा में राज्य बजट पेश करते समय दिए गए एक बयान पर गौर करें :-👉in a bid to help revive the tea industry, the West Bengal government has fully exempted tea garden from 👉#payment_of_agriculture_income_tax for two fiscal year (2019 and 2020).

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👉डुवार्स तराई के सभी मित्र इन्हें नोट करें कि पश्चिम बंगाल राज्य के वित्त मंत्री अमित मित्र जी चाय बागानों को #एग्रीकल्चर_इनकम टैक्स से छूट दे रहे हैं। मतलब चाय बागान Agriculture Sector है।

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👉उपरोक्त का संक्षिप्त अर्थ यह हुआ कि चाय बागान क्षेत्र #एग्रीकल्चर_सेक्टर क्षेत्र है और यह manufacture, service or industrial sector नहीं है।

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👉इसलिए चाय बागान के भूमिहीन आवास हीन मजदूरों को सरकारी भूमि को आवास बनाने के लिए प्राप्त करने का हक है और वह इसके पात्र हैं। इस मामले में किसी भी तरह की कोई कानूनी अड़चन नहीं है।

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👉ममता बनर्जी की सरकार ने चाय बागानों में रहने वाले भूमिहीन, आवासहीन चाय मजदूरों को आवास के लिए भूमि पट्टा देने का वादा किया हुआ है। ममता बनर्जी ने लोकसभा चुनाव के मौके पर सुभाषिनी चाय बागान, टियाबोन (चालसा) तथा कुमारग्राम में दिए अपने चुनावी भाषण में घोषणा की थी कि जल्द ही चाय बागान मजदूरों को आवासीय लीज दिए जाएँगे। इसके लिए ममता दीदी ने राज्य के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक समिति गठन करने का भी आदेश दिया था। लेकिन आश्चर्य की बात है कि सत्ताधारी नेतागण इस मामले में कानूनी अड़चन आड़े आने की बात करके इसे टालते रहे हैं। उत्तर बंगाल से निर्वार्चित विधायक और एमपी राज्य सरकार से पूछें कि ममता बनर्जी द्वारा मुख्य सचिव की अध्यक्षता में गठित समिति ने आवास पट्टा के संबंध में क्या रिपोर्ट दी है। इसे विधानसभा में पूछना ज्यादा उचित है।

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👉उपरोक्त जानकारी के आलोक में चाय मजदूर सरकार और तृणमूल कांग्रेस के नेताओं से पूछ सकते हैं कि वे चाय मजदूरों को आवास अधिकार के तहत भूमि का पट्टा क्यों नहीं दे रहे हैं???

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👉चाय मजदूर 1868 से ही डुवार्स के चाय बागानों में बस गए हैं। The Plantation Labour Act 1951 के पूर्व चाय बागानों में क्वार्टर देने का कोई कानूनी प्रावधान नहीं था। ब्रिटिश शासन के दौरान चाय मजदूर अपने झोपड़ियों का प्रबंधन खुद करते थे और इसके लिए वे चाय बागानों के बगल के जंगलों को साफ करके अपने गाँव बसाए थे। Transport of Native Labourers Act of 1863, the Bengal Acts of 1865 and 1870, the Inland Emigration Act of 1893, the Assam Labour and Emigration Acts of 1901 and 1915, और the Tea Districts Emigrant Labour Act of 1932 के द्वारा Indentured Labour चाय बागानों में लाए जाते थे।

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.👉तब Agreement करके उन्हें असम और बंगाल लाए जाते थे। एग्रिमेंट में 1) तीन साल के लिए 2) वेतन का भुगतान 3) रहने की जगह का उल्लेख होता था। मजदूरों को खुद जंगल साफ करके अपने रहने की जगह बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था। लेकिन The Plantation Labour Act 1951 में क्वार्टर देने के प्रावधान बन जाने के कारण मजदूरों की जमीन को अधिकृत करके चाय बागान मालिकों को सौप दिए गए और बागान प्रबंधन ने वहाँ मजदूर क्वार्टर बनाए। लेकिन 70 वर्ष बीत जाने के बावजूद सभी चाय मजदूरों को न तो क्वार्टर मिला और न ही बने क्वार्टरों का कोई रखरखाव किया गया। फलतः मजदूर बाध्य होकर अपने पैसों से घरों का रखरखाव करने लगे हैं।

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👉केन्द्र सरकार ने सन् 2022 तक सभी नागरिकों को आवास मुहैया करने का ऐलान किया है। (सांसद महोदय इस बारे केन्द्र सरकार से पत्रचार करें) राज्य सरकार भी विभिन्न आवास योजनाओं के माध्यम से गरीबों, बेघर वालों को आवास उपलब्ध करा रही है। चाय बागानों में स्थानीय सरकार अर्थात् त्रिस्तरीय पंचायत के माध्यम से नागरिक सुविधाएँ मिल रही है। चाय बागान प्रबंधन The Plantation Labour Act 1951 के प्रावधान से बंधे होने के कारण मजदूर बस्तियों के कर्तव्य से खुद को अलग नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे में राज्य सरकार को इस संबंध में केन्द्र सरकार के साथ परामर्श करके तुरंत निर्णय लेकर चाय मजदूरों को आवासीय भूखंड उपलब्ध कराए।

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👉अलिपुरद्वार, कुचबिहार, जलपाईगुड़ी, दार्जिलिंग के सांसद असम, केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु के सांसदों से मिल कर टी प्लान्टेशन एक्ट में क्वार्टर देने के प्रावधान को निकालने या उसे वैकल्पिक बनाने के लिए संसद में बिल पेश कर सकते हैं।

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👉ग्राम पंचायत के ग्राम संसद 💪 में सभी मजदूर, मजदूर संघ और अन्य नागरिक शामिल हो कर घर के पट्टा देने के लिए बागानों में स्थित पंचायतों में प्रस्ताव पास कर सकते हैं, जिसे राज्य और केन्द्र सरकार को भेजा जा सकता है। इस लेख को अधिकतम शेयर, ह्वाट्सएप, ईमेल करें नेह_इंद।