टी टूरिज्म चाय मजदूरों के लिए बर्बादी का पैगाम

नेह इंदवार
🎄🌿🍀Kind Attention #Dooars_Terai
लेख लम्बी है, लेकिन चाय मजदूरों और उनके लिए काम करने वालों के लिए महत्वपूर्ण है।
.
भूमिहीन चाय मजदूरों को अपने आवासीय पट्टा देने के बजाय, टी ट्यूरिज्म के नाम पर पश्चिम बंगाल सरकार के द्वारा 150 एकड़ तक बागान भूमि को चाय बागान मालिकों को देने की नीति का घोषणा चाय मजदूरों के लिए अत्यंत अन्यायकारी है। इसका दूरगामी प्रभाव होगा और जो जमीन को मजदूर अपनी माँ समझते आए हैं वहाँ उनके लिए भविष्य में कोई ठौर -ठिकाना नहीं होगा।
🎄
सरकार के इस कदम से चाय मजदूरों को एक नये पैसा का लाभ नहीं मिलेगा, बल्कि उनके शोषण का दायरा बढ़ जाएगा और चाय बागानों में बाहरी उच्च प्रशिक्षित आबादी बढ़ जाएगी, जिनकी आय चाय बागान मजदूरों से सैकड़ों गुणा ज्यादा होगी, और वे आर्थिक शोषण के बल कर बागानियार लोगों के सर्वेसर्वा बन जाएँगे। सरकार के नये कदम से मजदूरों को चाय बागान में मजदूरी करने के बजाय़ पर्यटकों की खिदमदगिरी करनी होगी और वे होटल में काम करने वाले घरेलू नौकर के रूप में तब्दिल हो जाएँगे। इस नीति के माध्यम से चाय बागानियारों को अल्पसंख्यक बनाने और बागानों से विस्थापित करने की पृष्टभूमि तैयार की जा रही है। इसी षड़यंत्र के तहत मजदूरों की मजदूरी नहीं बढ़ाई जा रही है और न ही उन्हें आवासीय पट्टा दी जा रही है।
🎄
आईए देखते हैं सरकार की नयी नीति में क्या-क्या संभावित तब्दिली होने की संभावना है।
1. 🍀चाय बागानों के कुल क्षेत्रफल में अब 5 प्रतिशत की जगह 15 प्रतिशत भूमि पर चाय के अलावा अन्य वाणिज्यिक कार्यकलाप किए जा सकेंगे। यह कदम इसलिए उठाया गया है ताकि चाय उत्पादन के बढ़ते उत्पादन खर्च की भरपाई अन्य स्रोत से होने वाली आय से की जा सके।
2. 🍀सरकार ने चाय बागान की आय में वृद्धि करने और नये रोजगार के सृजन के लिए यह कदम उठाया है।
3. 🍀चाय बागान प्रबंधन को इसके लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में बनाई गई एक समिति के पास आवेदन करना होगा, और समिति पर्यटन संबंधित कुछ नियम और शर्तों को पूरा करने की शर्त पर चाय बागान प्रबंधन को 15 प्रतिशत भूमि को अन्य कार्य में उपयोग करने के लिए अनुमति देगी।
4. 🍀चाय बागान अधिकतम 15 प्रतिशत भूमि को ही चाय पर्यटन के लिए उपयोग कर पाएँगे। लेकिन बागान इसके लिए चाय पौधों को नहीं उखाड़ पाएंगे और सिर्फ ऐसे जमीन का ही उपयोग करेगा, जो अब तक परती (unused) पड़ी हुई है। इसके अलावा बागान को परती जमीन के सिर्फ 40 प्रतिशत भाग पर ही विनिर्माण (Constructions) कार्य करने की अनुमति होगी।
5. 🍀चूँकि भूमि सरकार की स्वामित्व में है और कंपनी को लीज पर दी गई है, इसलिए जब तक सरकार भूमि के चरित्र (Character of the land) में परिवर्तिन करने की अनुमित नहीं देगी, पर्यटन परियोजना को शुरू नहीं की जा सकेगी।
6. 🍀तृत्रमूल कांग्रेस की सरकार ने 2013 में चाय बागान में 5 प्रतिशत भूमि में टी टूरिज्म की अनुमित दी थी। लेकिन चाय बागान मालिक अधिक क्षेत्रफल में चाय पर्यटन के लिए अनुमित की मांग कर रहे थे। इसलिए सरकार ने यह कदम उठाया। सरकार मानती है कि यह कदम रूग्ण होते चाय उद्योग में नया जीवन का संचार करेगा।
7.🍀इस योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए राज्य के वाणिज्य मंत्रालय और उद्योग मंत्रालय नोडल मंत्रालय के रूप में कार्य करेंगे। इच्छुक चाय बागान टी टूरिज्म के लिए इन मंत्रालयों में आवेदन करेंगे, जिसे मूल्यांकन के बाद मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली समिति को भेज दी जाएगी। इस समिति में पर्यावरण मंत्रालय, कृषि मंत्रालय और टी बोर्ड के प्रतिनिधि भी शामिल रहेंगे।
🎄
फिलहाल उपरोक्त बातें कानूनी रूप से परिदृष्य में नहीं आया है। लेकिन उपरोक्त बातों से स्पष्ट हो गया है कि सरकार का सारा ध्यान चाय बागान मालिकों के आर्थिक विकास करने और उनका स्थायी उपनिवेश स्थापित करने में है। सरकार की नजर में 150 वर्षों से रह रहे चाय मजदूरों के चाय बागानों में आवासीय अधिकार होने के दावों और मांग के बारे कोई मूल्य नहीं है वे उन अधिकारों के बारे न तो सोचना चाहती है और न ही मजदूरों के हक की बात को स्वीकार करती है। भले ही इन चाय बागानों को उनके पूर्वजों ने अपने हाड़ मांस गला कर सजाया संवारा है और उसे अपना माना है।
🎄
सरकार, सरकारी नेताओं, बाबुओं को वित्तीय पोषण करने वाले पूँजीवादियों को चाय बागान में स्थायी राजत्व, जमींदारी देने के लिए कमर कस ली है और वे चाय बागान के मजदूरों को धीरे-धीरे चाय बागानों से विस्थापित करने का प्लान लेकर चल रही है।
🎄
तृणमूल की सरकार ने 2013 में ही चाय बागान की कुल भूमि में से 5 प्रतिशत जमीन टी टूरिज्म के लिए अनुमति दी थी। इस अनुमति का कितने चाय बागानों ने लाभ उठाया ? टी बोर्ड के एक रिपोर्ट के अनुसार 8 से 100 हेक्टर वाले चाय बागानों की संख्या 14 बागान है। 100 से 200 हेक्टर वाले चाय बागानों की संख्या 13 है। 200 से 400 हेक्टर वाले चाय बागानों की संख्या 47 है जबकि 83 चाय बागानों के पास 400 हेक्टर से अधिक जमीन है। 400 हेक्टर वाले चाय बागानों में 15 प्रतिशत भूमि करीब 60 हेक्टर होता है।
🎄
सरकार बताए कि इतने बड़े क्षेत्र में डुवार्स तराई या दार्जिलिंग के पहाड़ी क्षेत्रों में कितने लोगों की क्षमता वाले पर्यटन केन्द्र बनेंगे। 60 हेक्टर का मतलब 148 एकड़ या 444 बीघा जमीन होता है। क्या चाय बागानों के पर्यटन के लिए 444 बीघे जमीन की आवश्यकता है ? सीधे-सीधे जमीन हथिया कर किसी दूसरे काम के लिए रास्ता तैयार करने का यह कदम है।
🎄
डुवार्स तराई में चल रहे प्रोजेक्ट चाय बागानों, बस्तियों तथा गोरूमारा, मदारीहाट, जयंती, चिलापाता आदि जगहों में एक बीघा जमीन पर Home stay accommodations बना कर पर्यटन को बढ़ावा दिया जा रहा है वहीं चाय बागानों में सरकार एक छोटे शहर बनने जितने बड़ी भूमि को इसके लिए दरवाजा खोल रही है। क्या सरकार पागल हो गई है या मजदूरों को खत्म करने का कोई प्लान है?
🎄
क्या सरकार ने 2013 को दी गई अनुमति और उस पर हुए पर्यटन संबंधी नीति की कोई समीक्षा की है? यदि की है तो उसे वह सार्वजनिक बहस के लिए सामने रखे। यदि उन्होंने नहीं की है तो वह बताए कि किस आधार पर उनसे नई नीति की घोषणा की है ?
🎄
सरकार की नीति में चाय टूरिज्म के लिए ऐसी भूमि का उपयोग किया जाएगा, जो परती या unused है। लेकिन सरकारी नियम यह भी कहता है कि जिस सरकारी भूमि को जिस घोषित उद्देश्य के लिए आबंटित की गई है, यदि पाँच वर्ष तक लगातार उसका उपयोग नहीं किया जाता है तो उस जमीन की लीज अनुमति अपने आप खत्म हो जाती है।
🎄
अब सरकार बताए कि जिस जमीन पर पिछले सौ साल में चाय बागान नहीं लगाया गया है, वह कैसे बागान के लीज स्वामित्व में मौजूद होगा ? पाँच वर्ष के बाद ही बागान की स्वामित्व उस जमीन से खत्म हो गई है तो वह कैसे उस जमीन का उपयोग पर्यटन के लिए कर सकती है?
🎄
अनेक चाय बागान की लीज तो किसी और के नाम पर है और बागान कोई और चला रहा है। ऐसे में सरकार की नीति क्या होगी ? अनेक चाय बागान लीज सलामी का भूगतान किए ही बागान संचालित किए जा रहे हैं, ऐसे बागानों की कानूनी स्टेट्स क्या है ? क्या बागान में मजदूरी से वंचित करके मजदूरों को पलायन के लिए मजबूर करके हड़पी जमीन पर पर्यटन उद्योग के लिए विनिर्माण कार्य किए जाएँगे ?
🎄
सरकार की मनसा सच्ची होती तो वह टी टूरिज्म के बजाय चाय बागानों में होर्टिकल्चर की अनुमति देने के लिए कदम बढ़ाती। होर्टिकल्चर के माध्यम से चाय बागानों की कायापलट की जा सकती है। चाय उद्योग कृषि जनित कार्यकलाप है ओर होर्टिकल्चर का विकास चाय बागानों में सफलता पूर्वक किया जा सकता है। मजदूर होर्टिकल्चर के बागानों में उसी तरह कार्य कर सकते हैं, जैसे वे चाय बागानों में करते हैं। लेकिन पर्यटन उद्योग का चरित्र ही कृषि कार्यों के उलट है और इसके लिए अलग चाल-चरित्र की जरूरत होती है।
🎄
आखिर पर्यटन उद्योग को क्यों सरकार चाय उद्योग के हवाले करना चाहती है? क्या इसलिए कि चाय उद्योगपति सत्ताधारी पार्टी को अरबों का चंदा देते हैं? एक पूर्वगामी उद्य़ोग और एक पश्चिमगामी, पूरे विरोधी चाल-चरित्र के उद्योगों को क्यों डुवार्स तराई और दार्जिलिंग के हरित क्षेत्रों में सरकार मिलाना चाहती है? सरकार ने टी टूरिज्म के लिए कोई नीति की घोषणा कानून बना कर नहीं की है, बल्कि एक समिति के हवाले से इस नीति को लागू करने की मंशा बनाई है। यह मंशा ही अपने आप में बड़े झोल होने का संकेत कर रहा है। ऐसा लगता है जो सरकारी पक्ष और नेताओं का झोला भरेगा, उसे ही यह अनुमित प्राप्त होगी और जो नहीं भरेगा, उसके आवेदन को कचरे की पेटी में फेंक दी जाएगी।
🎄
एक बार जमीन हथिया कर उसमें टूरिज्म उद्योग स्थापित नहीं करके फिर से किसी अन्य उद्योग के उपयोग की अनुमति ली जाएगी और स्थानीय वासियों को वहाँ से भगाया जाएगा। क्योंकि उनके पास नये उद्योग के लिए skills नहीं होगी और वे नये उद्योग के लिए अनफिट हो जाएँगे। देश के अनेक भागों में यह हो चुका है।
🎄
सरकार बताए कि टी टूरिज्म का आकार-प्रकार और उसके वाणिज्यिक कार्यकलाप का क्षेत्र क्या होगा ? वह चाय बागान कंपनी के अधीन ही चाय उत्पादन का एक अंग होगा, या उसके लिए अलग कंपनी बनाई जाएगी और पर्यटन में दक्ष कंपनियों को उसके संचालिन के लिए बुलाया जाएगा ? उसके लिए अलग से प्रशिक्षित कर्मचारी नियोग किए जाएँगे ? पर्यटन उद्योग से प्राप्त आय को बागान के आय के रूप में शामिल किया जाएगा, या उसके लाभ-हानि का अलग से एकाउण्ट बनाया जाएगा और उसके हिसाब-किताब को अलग से रखा जाएगा और उसके वेतनमान पर्यटन उद्योग के अनुसार तय किया जाएगा ?
🎄
सरकार नये रोजगार उत्पन्न करना चाहती है। वह बताए कि इस नीति से किनके लिए रोजगार का सृजन होगा ? पर्यटन उद्योग में Tourism Management किए हुए लोगों की जरूरत होती है। बागान मजदूर इसके लिए कितने पात्रता रखते हैं ? सैकड़ों सवाल है। लेकिन इन सवालों को कौन राजनैतिक पार्टी या मजदूर संघ उठाएगा ? क्या सरकार इन सवालों का जवाब भी देगी ?
🎄
यदि चाय उद्योग के आर्थिक पक्ष की सरकार को बहुत चिंता है तो वह बताए कि उसे मजदूरों के आर्थिक पक्ष की चिंता है या नहीं ? आखिर वह क्यों मजदूरों को आवासीय पट्टा या प्रजा पट्टा नहीं दे रही है ? यदि वह मजदूरों को आवासीय पट्टा देगी तो क्या मजदूर मिल कर Home Stay Accommodation नहीं चला सकते हैं ? सरकार की चिंता मजदूरों के सशक्तिकरण की नहीं है, बल्कि वह पूँजीपतियों के Empowerment की चिंता अधिक कर रही है? आखिर इसकी मूल वजहें क्या है ? नेह इंद।

टी टूरिज्म चाय मजदूरों के लिए बर्बादी का पैगाम” पर एक विचार

  1. आपके लेख से प्रभावित हूँ।इस संदर्भ में मैं छोटी -सी बात जोड़ना चाहूँगा कि 2024 तक बागान के लीज समाप्त हो जाएंगे ऐसी स्थिति में पट्टा के लिए जिला कलेक्टर के समक्ष याचिका दर्ज करना एक उपयोगी कदम हो सकता है।इसके लिए जरूरी है कि सभी बागानों के शिक्षित ,बुद्धिजीवी वर्ग तथा मज़दूर समुदाय को एकजुट होकर अपने अधिकार और अस्तित्व के संरक्षण के लिए एक रास्ता ढूंढने की जरूरत है; यह मार्ग हमें जागरूकता अभियान के ताहत मिल सकती है।हमें कुछेक पढ़े-लिखे युवक-युवतियों की आवश्यकता है जो प्रत्येक बागानों में जाकर लोगों के बीच बैठक के माध्यम से अपनी बातों को साझा कर सकेंं।परन्तु खेद है कि उनके पास इतने रूपये नहींं हैं।हम आर्थिक रूप से कमजोर हैं। हमने मेरे फेसबुकिया मित्र (राहुल एंव आशिक )से आपके बारें में अल्प जानकारी हासिल की है। यदि आप आर्थिक रूप से हमें सहयोग कर सकते हैं तो हम इस दिशा में समय और योगदान दे सकते हैं।पता नहीं है कि मेरी ये बातें रोचक है कि नहीं यह मैं नहीं जानता। जेम्स कुजूर (चाय श्रमिक का पुत्र) सिलिगुड़ी

    पसंद करें

I am thankful to you for posting your valuable comments.

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.