विज्ञान के आईने में धर्म

नेह अर्जुन इंदवार
दोस्तों यह एक लम्बी लेख है। लेकिन यह जिंदगी में बड़े काम का सिद्ध हो सकता है। इसे सेव करें और चाहें तो कई हिस्सों में पढ़ें।
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विज्ञान से संबंधित कुछ बातों को हमें यथार्थ रूप में समझने की जरूरत है। विज्ञान कभी भी अपने आपको पूर्ण और यूनिवर्स की सारी बातों का जानकार कभी नहीं कहा है। विज्ञान तो अपने आपको सबसे पहले अज्ञानी ( ( लैटिन में IGNORAMUS) कहता है।
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विज्ञान में अज्ञानता को स्वीकार करने की इच्छा है और सबसे पहले वह यही इच्छा की घोषणा करता है कि हम कुछ नहीं जानते हैं। Astrophysicist Paul M. Sutter वैज्ञानिकों के बारे कहते हैं “Scientists are by and large ignorant people. In fact, science as a discipline is a study in ignorance. We don’t understand many things about the way nature works. That itself is ignorance, defined. अर्थात् सामान्यताः वैज्ञानिक बड़े अज्ञानी लोग हैं। वास्तव में, एक विषय के रूप में विज्ञान अज्ञानता का अध्ययन है। प्रकृति के काम करने के तरीके के बारे में हमें बहुत सी बातें समझ नहीं आती हैं। यह परिभाषित करता है कि यह स्वयं में अज्ञानता है।”
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अमेरिकन यहुदी लेखक युवाल नोआ कहते हैं:- “हम हर चीज नहीं जानते हैं। इससे भी अधिक विज्ञान आलोचनात्मक रूप से यह स्वीकार करता है कि जिन चीजों के बारे हम सोचते हैं कि हम उसको समझते हैं, वे हमारे, और अधिक, ज्ञान हासिल करने पर गलत साबित हो जाता है। विज्ञान का कोई भी अवधारणा, विचार या सिद्धांत #परमपावन_चुनौती से परे नहीं है।
विज्ञान पर्यवेक्षण और गणित की केन्द्रीय सहायता के सहारे आधुनिक विज्ञान का नया ज्ञान हासिल करता है। वह यह काम हजारों पर्यवेक्षणों को एकत्र करके गणितीय उपकरणों के सहारे पर्यवेक्षणों को आपस में जोड़कर व्यापक सिद्धांत (ओं) को गढ़ते हुए यह काम करता है।”
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वे आगे कहते हैं “वैज्ञानिक क्रांति ज्ञान की क्रांति नहीं रही है, अपितु यह #अज्ञान_की_क्रांति रही है। विज्ञान ने ही सबसे #पहले_यह_खोज की कि मनुष्य अपने और प्रकृति के महत्वपूर्ण सवालों के बारे कोई जवाब नहीं जानता है।”
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विज्ञान की इन बातों को पूरी तरह से समझ लीजिए फिर विज्ञान की सीमितता या बौनापन पर बातें कीजिए।
लेकिन आगे देखिए … धर्म क्या कहता हैः– दुनिया के तमाम धर्म, चाहे आप किसी भी धर्म का नाम ले लें। वे आधुनिक पूर्व ज्ञान परंपराओं (Pre-modern knowledge traditions) के बारे अपने धार्मिक किताबों में दावा करते हैं कि ज्ञान परंपरा में जो भी बातें जानने योग्य और जो भी बातें महत्वपूर्ण थीं, वे धर्म के द्वारा पहले ही जानी जा चुकी है। महान देवता या परमेश्वर या अतीत के दिव्य ज्ञानी पुरूषों के पास सर्वव्यापी प्रज्ञा (Universal wisdom) थी, जिस उन्होंने धार्मिक किताबों और मौखिक ज्ञान परंपराओं के माध्यम से मनुष्य जाति के लिए उजागर कर दिया था। कई धार्मिक लोगों का कहना है कि यूनिवर्स में जो कुछ भी रहस्या, ज्ञान है, सब उनकी धार्मिक किताबों में लिखी गई हुई है।
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लेकिन कितने आश्चर्य की बात है कि उन लिखी इबारतों के आधार पर किसी भी धर्म ने आज तक किसी भी तरह की कोई वैज्ञानिक अविष्कार तक नहीं किया या उस सच्चाई को प्रयोगिक रूप से प्रदर्शन करके नहीं बताया। आखिर उनके विश्वास, दावों में कितनी वास्तविकता है? प्रकृति की किसी भी एक प्रक्रिया/बात के लिए हर किताब में अलग-अलग दावे। और हर दावे के पीछे ईश्वरीय वाणी होने का उल्लेख। 1500 इस्वी सन् के बाद विज्ञान ने हर तरह की अपनी बातों, सिद्धांतों को लाखों बार दोहरा-दोहरा कर प्रदर्शित किया और ऐसा विवरण दिया कि कोई भी उसे दोहरा कर उसकी सच्चाई जान सकता है। लेकिन धर्म के मामले पर आज तक ऐसा कुछ नहीं हुआ।
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धार्मिकता की हद है कि करोड़ों साधारण धार्मिक मनुष्य इन्हीं प्राचीन किताबों और परंपराओं में गोता लगाते हुए प्राकृतिक (यूनिवर्स) की परम रहस्यों को समझने के लिए इन्हीं किताबों में डुबे हुए रहते हैं। इनकी एक-एक पंक्तियों को रटते हैं और हजारों तरीके से उनकी व्याख्या करते हैं। आश्चर्य तो तब अधिक होता है, जब एक धर्म वाले दूसरे धर्म वालों की ऐसी ही ईश्वरीय किताब को झूठा कहते हैं। मतलब मेरा दही अच्छा, तुम्हार खट्टा।
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इन किताबों के लब्बोलुआब यही है कि इन किताबों को औलोकिक इंसानों या भगवानों ने स्वयं लिखा है और उन्होंने (लिखने वाले ने) समस्त ज्ञान और प्राकृतिक रहस्यों को समझ लिया था, और समस्त अंतिम ज्ञान को हासिल कर इसमें लिख दिया है। हाड़ मांस के मनुष्य को इससे अधिक जानने की जरूरत नहीं थी और न है, इसलिए इन किताबों में ज्ञान की अन्य बातों को नहीं लिखा गया है।
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धार्मिक, भक्त और इन किताबों के प्रशंसक, जिनमें साईंस लेकर डाक्टर, इंजिनियर बने लोग भी हैं, इन किताबों में लिखी बातों को परम सत्य समझते हैं। इनकी प्रशंसा करते हैं और अपनी बातों सार्वजनिक रूप से छुपाते भी नहीं है। वे अपने ही लोगों को इन पर आँख बंद करके विश्वास करने के लिए दबाव डालते हैं।
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इनमें से कई लोग तो विज्ञान को बौना और झूठा कहने से भी नहीं चुकते हैं। बड़े-बड़े भव्य इमारतों में बने धार्मिक केन्द्रों में पैसों की खनक के साथ धार्मिक कार्मकांड को अपरिहार्य बताने वाले विज्ञान और धर्म में क्या अंतर है, इसे वे कैसे परिभाषित करते हैं ?
एक ओर विज्ञान अपने को अज्ञान का अध्येयता कहता है, दूसरी ओर यूनिवर्स के सारे रहस्य और ज्ञान को जानने और सिर्फ एक ही किताब में इसके होने के दावे।
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विज्ञान यूनिवर्स के कार्य पद्धति पर माथापच्ची करने में पसीने-पसीने हो रहा है, वहीं दूसरी ओर यूनिवर्स की रचना पर एक ही पृष्ट पर सारी जानकारी होने का पुख्ता दावा। ऊपर से इन दावों पर सवाल उठाने वालों पर हजारों तीक्ष्ण वाण। सवाल उठाने वाले न जाने कितने लोग इनके गाली और गोली के शिकार हो गए हैं। दूसरी ओर किसी सिद्धांत पर सवाल उठने पर विज्ञान उसे लपक कर ग्रहण करता है और नये सवालों पर दिमाग लगाता है। न्यूटन और आइंस्टाईन के सिद्धांतों में भी गलतियाँ निकाली जा रही है और इसे अतिशुभ समझा गया है।
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आज से सौ साल पूर्व धार्मिक आचार-विचार, प्रथाओं पर बहुत साधारण सा सवाल उठते थे। लेकिन आज सार्वभौमिक शिक्षा ने जीवन के हर क्षेत्र में मानवीय सभ्यता के राहों पर बिछी कांटों को गौर से देखना शुरू किया। स्वतंत्र विवेकशीलता को सर्वोत्तम कहा जा रहा है। रोज लाखों सवाल उठते हैं, रोज लाखों चर्चाऐँ, समीक्षाएँ होतीं है। कुछ अल्पकालीन होती है तो कुछ स्थायी। मनुष्य के सोचने की दिशा और दशा पर ही किसी समाज के विकास की गाड़ी चलती है। सदियों से शिक्षा से दूर रखे समाजों में वैचारिकी क्रांति की जरूरत कितनी है, इसे हर तरह के शोषण से मुक्त हुए समाज ही बता सकता है। नये शिक्षित होते समाज के दिमाग को पंगु बनाने के लिए धर्म का इस्तेमाल बहुत चालाकी से किया जा रहा है। इसे भी जानने की जरूरत है।
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बाजार की माँग और आपूर्ति के आधार पर चलने वाले आधुनिक धर्म सभी समस्याओं का समाधान अपनी धार्मिक किताबों में ढूँढते हैं। धर्म विज्ञान को हेय नजर से देखने के लिए प्रेरित करता है। यहीं वैचारिकी स्वतंत्रता पर आधात पहुँचता है, और दिमाग धर्म के आधार पर बँट कर रह जाता है। हिंसा का अधिकतर स्रोत धर्म ही रहा है।
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आधुनिक समाज, विशेष कर पिछड़े समाजों को आध्यात्मिकता, व्यक्तिगत धर्म, सार्वजनिक-संगठित धर्म के बीच अंतर करने, धर्म के नाम पर जनता का बेजा इस्तेमाल करने और उनकी कमाई को धर्म के नाम पर लूटने की प्रक्रिया को समझने पर विवेक लगाने की जरूरत है। धर्म के नाम पर बच्चों के दिमागों को बचपन से ही पंगु और गुलाम बनाने की प्रक्रियाओं को समझने और उससे अपने भविष्य की पीढ़ी को बचाने की जरूरत है।
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हम किसी के व्यक्तिगत धर्म की आलोचना नहीं करते हैं। हम किसी के व्यक्तिगत भगवान, व्यक्तिगत आस्था या प्राकृतिक शक्तियों की भी आलोचना नहीं करते हैं। ऐसा करना निरा बेवकूफी है।
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विज्ञान कभी ईश्वर को जानने का कोई दावा नहीं करता है। विज्ञान Quantum Theory, String theory, Theory of everything आदि दर्जनों सिद्धांत और प्रक्रिया से यूनिवर्स के रहस्या को समझने की कोशिश कर रहा है। वह ध्यान, मेडिटेशन, योगा आदि में दिमाग कैसा काम करता है, पर भी गहरा अध्ययन कर रहा है। दिमाग को सबसे जटिल मशीन माना गया है। पदार्थ की अंतिम तह तक पहुँचने के लिए खरबों व्यय करके उसकी प्रक्रिया तो जानने की कोशिश चल रही है। विज्ञान घमंडहीन होकर किसी भी आलोचना का स्वागत करता है। वह खुद को अज्ञानी और अज्ञान का अध्ययेता कहता है।
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भगवान, स्वर्ग नर्क की सच्चाई क्या है? भगवान या शैतान कहाँ रहता है? क्या वह बादलों के उपर है? इतिहास के मध्यकालीन युग में लिखी इन बातों को विज्ञान की कसौटियों पर रखने की कोशिश करें। इन किताबों के सृजन काल में वैचारिकी-ज्ञान, तकनीकी का स्तर क्या था? इतिहास के मध्ययुग में पृथ्वी, आकाश, चाँद, तारों के संबंध में जानकारी, ज्ञान, वैचारिकी स्तर क्या था, इसका एक अंदाजा नीचे के तस्वीर को देख कर करें। व्यक्तिगत रूप से धार्मिक जरूर बनें, लेकिन पूँजी और सत्ता आधारित आर्थिक, राजनैतिक कार्यकलापों का धार्मिक हिस्सा बनने से बचें। वह सिर्फ आपका शोषण करेगा, कल्याण नहीं। ..नेह।
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