पहली बार झारखंड के 250 स्कूलों में आदिवासी भाषाओं में पढ़ाई शुरू होगी।
झारखंड के अखबारों में प्रकाशित ख़बरों के अनुसार झारखंड के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले आदिवासी बच्चों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा मिलेगी। प्रथम चरण में राज्य के 6 जिलों पश्चिम सिंहभूम, गुमला, साहिबगंज, सिमडेगा, लोहरदगा और खूंटी जिलों आदिवासी भाषाओं में पढ़ाई शुरू होगी। इन जिलों के 250 स्कूलों में संथाली, हो, मुंडारी और खड़िया यानी पांच आदिवासी भाषा में पढ़ाई शुरू होगी। अखबारी ख़बरों के अनुसार इन स्कूलों में कक्षा 1 से लेकर 5 तक के बच्चों को आदिवासी भाषा में पढ़ाने के तैयारी की जा रही है। इसके लिए किताब भी तैयार किया गया है।
शिक्षा विभाग के अनुसार फिलहाल राज्य भर के ऐसे 4600 स्कूलों को चिह्नित किया गया है, जहां आदिवासी भाषा बोलने वाले बच्चे 70 प्रतिशित या उससे अधिक नामांकित हैं।
शिक्षा विभाग के अनुसार पहले चरण में खूंटी में 60 मुंडारी स्कूल, लोहरदगा में 50 कुड़ुख स्कूल पश्चिम सिंहभूम में 49 हो स्कूल, गुमला में 16 खड़िया स्कूल, सिमडेगा में 20 खड़िया स्कूल और साहिबगंज में 25 संताली स्कूल मैं आदिवासी भाषाओं में शिक्षा दी जाएग।
विद्यालयों में इन भाषाओं में पढ़ाई को लेकर विद्यालय प्रबंधन समिति और अभिभावकों से भी विचार विमर्श किया जाएगा। इसके लिए जिला स्तर पर समिति गठित की जाएगी। समिति में चयनित प्रखंड के प्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारी प्रखंड कार्यक्रम पदाधिकारी, दो बीआरपी, सीआरपी और चयनित विद्यालयों के 5 शिक्षक इसमें शामिल होंगे। समिति को यह जिम्मेदारी दी गई है कि लोगों को मातृभाषा में पढ़ाई के महत्व के बारे में जानकारी दी जाए और 25 अक्टूबर तक बैठक करने व 30 अक्टूबर तक इसकी रिपोर्ट झारखंड शिक्षा परियोजना को भेजने के लिए कहा गया है।
पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव 2021 के पूर्व पारित अर्द्ध बजट में ममता सरकार ने कई भाषाओं के स्कूल शुरू करने की घोषणा की थी। घोषणा के अनुसार कुल 500 करोड़ में से 100 करोड़ ओकचिकी के संताली माध्यम के स्कूल में व्यय किए जाएँगे। वहीं कुड़ुख और सादरी भाषाओं के स्कूल में 50 करोड़ रूपये खर्च किए जाएँगे। उल्लेखनीय है कि 2017 के 21 फरवरी को मातृदिवस के अवसर पर ममता बनर्जी ने उराँव समुदाय की कुड़ुख भाषा और राजबोंग्शी समाज के कमतापुरी भाषा के अनुमोदन की घोषणा की थी। लेकिन संताली भाषा स्कूल के अलावा अभी तक पश्चिम बंगाल में आदिवासी भाषाओं के पढ़ाई पर कुछ ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
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आशा है कि जो सिलेबस आएंगे वह बच्चों को उनके आदिवासी दर्शनों के प्रति और प्रेरित करने में और उत्साह बढ़ाएंगे ! अभी चूंकि यह प्राथमिक स्तर के चरण पर ही है तो इसमें उतना ही सब्र और प्यार की आवश्यकता है !
बिरला जोहार
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