क्या है हिन्दी कॉलेज का फण्डा

डुवार्सतराई में हिन्‍दी कालेज की मांग की जा रही है। इसके लिए विकास परिषद और अन्‍य दलों के द्वारा आंदोलन‍ किया भी किया जा रहा है और सरकार के साथ हुई अपनी द्विपाक्षिक वार्ता में आदिवासी विकास परिषद ने इस मुद्दे को विशेष तौर से उठाया भी था।

 

उत्‍तर बंगाल में स्थित जिलों में उच्‍च शिक्षा की जरूरत को पूरा करने के लिए उत्‍तरबंग विश्‍वविद्यालय की स्‍थापना की गई है। विश्‍वविद्यालय की यह नैतिक और संवैधानिक जिम्‍मेवारी है कि वह क्षेत्र के सभी समुदायों के उच्‍च शिक्षा की जरूरत को पूरा करने के लिए आवश्‍यक कदम उठाए। उत्‍तर बंग विश्‍वविद्यालय में भाषाई आधार पर कोई कॉलेज की स्‍थापना नहीं की गई है। आम तौर से भाषाई कॉलेज की स्‍थापना क्षेत्र विशेष अथवा समुदाय विशेष के लिए विशेष प्रावधानों के तहत किया जाता है। विश्‍वविद्यालय के अंतर्गत कोई भी कॉलेज न तो विशुद्ध बंग्‍ला भाषी कालेज है न ही अंग्रेजी भाषी। कई कॉलेज यथा शिलीगुडी, जलपाईगुडी और अलिपुरद्वार कॉलेजों में आमतौर से बंग्‍ला और अंग्रेजी के मिश्रित भाषा में अध्‍यापन का कार्य किया जाता है। दार्जिलिंग के कॉलेजों में अधिकतर अंग्रेजी में लेक्‍चर दी जाती है, लेकिन ऐसा इसलिए किया जाता है, क्‍योंकि अधिकांश विद्यार्थियों की पृष्‍टभूमि अंग्रेजी स्‍कूलों की होती है। आवश्‍यकतानुसार उन कालेजों में भी अंग्रेजीतर भाषाओं में अध्‍यापन किया जा सकता है।  

 

पश्चिम बंगाल में स्‍कूली शिक्षा के लिए बंग्‍ला, अंग्रेजी, उर्दू, नेपाली और ऑलचिकी लिपि से संताली भाषा के माध्‍यम से शिक्षा प्रदान की जाती है। उत्‍तर बंगाल के विद्यार्थी अपनी पसंद के अनुसार इन भाषाओं के माध्‍यम से स्‍कूली शिक्षा ग्रहण करते हैं। उच्‍च माध्‍यमिक कक्षाओं में भी विद्यार्थी अपनी स्‍कूल की भाषाओं का प्रयोग कर ही बोर्ड की परीक्षाऍं लिखते हैं।

 

ये विद्यार्थी जब डिग्री कॉलेज में जाते हैं तो हिन्‍दी माध्‍यम के विद्यार्थियों को छोड कर सभी विद्यार्थी अपनी स्‍कूली भाषा में बीए, बीकॉम की परीक्षाऍं लिखते हैं। बंग्‍ला, उर्दू और नेपाली माध्‍यम के स्‍कूलों में शिक्षा प्राप्‍त विद्यार्थी स्‍नातक और स्‍नातकोत्‍तर की प्राय: सभी परीक्षाऍं अपनी स्‍कूल की भाषाओं में लिख सकते हैं। वे चाहे किसी भी कॉलेज में शिक्षा ग्रहण करें और मिश्रित भाषाओं में लेक्‍चर सुने, लेकिन अपनी स्‍कूली भाषाओं में सहज ढंग से परीक्षाऍं लिखने के कारण उन्‍हें अच्‍छे मार्क्‍स मिलते हैं और वे भारी संख्‍या में उच्‍चशिक्षा ग्रहण करते हैं। गैर हिन्‍दी विद्यार्थियों को अपनी स्‍कूली भाषा में डिग्री और पीजी की परीक्षाऍं देने का विकल्‍प उपलब्‍ध है।

 

लेकिन हिन्‍दी माध्‍यम के विद्यार्थी को अंग्रेजी माध्‍यम से डिग्री परीक्षा देनी होती है, क्‍योंकि डिग्री और उच्‍चतर परीक्षाओं के लिए पश्चिम बंगाल के कॉलेजों और विश्‍वविद्यालयों में हिन्‍दी भाषा को मान्‍यता प्राप्‍त नहीं है। अंग्रेजी भाषा का पर्याप्‍त ज्ञान नहीं होने के कारण हिन्‍दी स्‍कूलों से स्‍कूली शिक्षा प्राप्‍त करने वाले विद्यार्थी बीए, बीकॉम और बीएससी की परीक्षाओं में फेल हो जाते हैं। जो पास करते हैं, उनके मार्क्‍स इतने कम होते हैं कि उन्‍हें न तो ढंग की कोई नौकरी मिलती है और न ही आगे की पढाई के लिए एडमिशन।

 

उत्‍तर बंगाल के आदिवासी हिन्‍दी माध्‍यम से स्‍कूली शिक्षा ग्रहण करते हैं। अनेक हिन्‍दी हाई स्‍कूल और हायर सेकेंड्री स्‍कूल हैं, जहॉं वे हिन्‍दी में पढाई करते हैं और हिन्‍दी माध्‍यम से परीक्षा देते हैं। लेकिन वे जब उच्‍च शिक्षा की पढाई के लिए कॉलेज में दाखिला लेते हैं तब उन्‍हें अन्‍य भाषाई विद्यार्थियों की तरह अपनी स्‍कूली भाषा अर्थात हिन्‍दी में परीक्षा लिखने का विकल्‍प नहीं रहता है और उन्‍हें अंग्रेजी अथवा बंग्‍ला भाषा में परीक्षा लिखने के लिए अतिरिक्‍त मेहनत करना पडता है।

 

पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा विश्‍वविद्यालयी स्‍तर के परीक्षाओं में हिन्‍दी के लिए अनुमोदन और अनुमति नहीं देने का कोई स्‍पष्‍ट कारण दिखाई नहीं देता है। अब तक सरकार ने भी इस विषय पर अधिकृत रूप से कोई मन्‍तव्‍य स्‍पष्‍ट नहीं किया है। मूल रूप से सरकार हिन्‍दी को प्रतिबंध नहीं कर सकती है। हिन्‍दी न सिर्फ केन्‍द्र सरकार में राजभाषा के पद पर बैठी हुई है, बल्कि पश्चिम बंगाल में 12 वीं कक्षा तक हिन्‍दी में पढाई भी होती है और विद्यार्थी हिन्‍दी माध्‍यम से 12 वीं की परीक्षाएँ भी देते हैं। ऐसी स्थिति में हिन्‍दी भाषा को डिग्री की परीक्षाओं के लिए विकल्‍प के रूप में मान्‍यता न देना हिन्‍दी माध्‍यम के विद्यार्थियों के साथ सरासर अन्‍याय और भेदभाव है। भेदभाव और अन्‍याय की इस नीति को पश्चिम बंगाल की हर सरकार और प्रशासन जबरदस्‍ती कायम किए हुए हैं, जबकि इसे हटाने के लिए पिछले पॉच दशक से हिन्‍दी भाषियों के द्वारा मांग की जा रही है। सरकार की इस भेदभाव और अन्‍यायपूर्ण भाषाई नीति का खामियाजा आदिवासी समाज को भुगतना पड रहा है। क्‍योंकि आदिवासी समाज हिन्‍दी माध्‍यम को शिक्षा के लिए सबसे सहज और अनुकूल पाकर इसके माध्‍यम से ही शिक्षा प्राप्ति को प्राथमिकता देता है।     

 

विकास के सोपान में चढने के लिए उच्‍चशिक्षा एक अनिवार्य कारक होता है। बिना उच्‍चशिक्षा के किसी भी समाज में विकास की गतिविधियॉं परवान नहीं चढती है। डुवार्सतराई के आदिवासी समाज में उच्‍चशिक्षा का प्रतिशत अत्‍यंत कम है। सिर्फ गिनेचुने युवा ही उच्‍चशिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। उच्‍च‍ प्रतिशत उच्‍चशिक्षा के अभाव में समाज में अपेक्षित गति से विकास का बयार नहीं बह रहा है। इसका सबसे बडा कारण पश्चिम बंगाल सरकार का हिन्‍दी के नाम पर किया जाने वाला भाषाई भेदभाव और अन्‍याय ही है। यदि हिन्‍दी माध्‍यम से स्‍कूली शिक्षा प्राप्‍त करने वाले आदिवासियों को डिग्री की परीक्षाओं में हिन्‍दी  माध्‍यम का विकल्‍प मिल जाए तो प्रत्‍येक वर्ष काफी संख्‍या में आदिवासी ग्रेज्‍युयेट बन कर निकलेंगे और इसका सीधा लाभ समाज को होगा और समाज में विकास के रथ को ज्‍यादा तेज गति से चलाया जा सकेगा।      

 

 

स्थिति में सुधार लाने के लिए विकास परिषद हिन्‍दी कॉलेजों की मांग कर रहा है। लेकिन सवाल कालेज का नहीं है। उत्‍तर बंग विश्‍वविद्यालय में कहीं भी भाषाई कालेज की स्‍थापना नहीं हुई है और अलग से हिन्‍दी कालेज बनाने में कई तकनीकी दिक्‍कतें पेश आएगी। प्रथम तो हिन्‍दी कॉलेज के लिए अलग से जमीन, भवन, बजट, फर्निचर, रूम, लैब, मैदान, लेक्‍चरर आदि तमाम अनिवार्य कारकों, साजोसामानों की आवश्‍यकता होगी। भवन आदि बन  भी जाऍगे, लेकिन योग्‍य हिन्‍दी प्राध्‍यापकों की नियुक्ति आडे आएगी। पुन: सवाल है कि कितने हिन्‍दी कालेजों की स्‍थापना की जाएगी।  इन कालेजों से दूर के क्षेत्रों के विद्यार्थियों के लिए हिन्‍दी में उच्‍च शिक्षा का विकल्‍प महंगा और दिक्‍कत भरा होगा। फिर जो विद्यार्थी वर्तमान कालेजों में पढ रहे हैं, उन्‍हें अलग से या तो नये कॉलेज में दाखिला लेना होगा, अन्‍यथा हिन्‍दी माध्‍यम में पढने की सुविधा को त्‍यागना पडेगा। अत: हिन्‍दी कालेजों की मांग तर्कसंगत और समीचीन नहीं है। बल्कि मांग तो विश्‍वविद्यालय के सभी परीक्षाओं में हिन्‍दी में परीक्षा लिखने की विकल्‍प की होनी चाहिए। जिसमें विश्‍वविद्यालय स्‍तर में हिन्‍दी ज्ञानी प्राध्‍यापकों की आवश्‍यकता होगी जो परीक्षा के उत्‍तरपुस्तिकाओं की जॉच कर सकें। इससे न सिर्फ तकनीकी असुविधओं से बचा जा सकेगा, बल्कि किसी भी क्षेत्र में किसी भी कॉलेज में किसी भी भाषा में लेक्‍चर सुनने और पढने वाले विद्यार्थी इसका लाभ उठा सकेंगे और आदिवासी समाज को उच्‍च शिक्षा हासिल करने से रोकने के लिए यदि कोई बहाना भी बनाना चाहे तो नहीं बना सकेगा।

 

आदिवासी विकास परिषद जब हिन्‍दी माध्‍यम से शिक्षा की बात उठाता है तो सरकार हिन्‍दी प्राइमरी और हाई स्‍कूल की बातों को लेकर बैठ जाती है। सरकार और प्रशासन का यह रवैया उच्‍चशिक्षा का ढांचागत विकास बनाने से बचने का सिर्फ एक बहाना है। पश्चिम बंगाल सरकार विश्‍वविद्यालय स्‍तर पर हिन्‍दी को मान्‍यता नहीं देना चाहती है और इसी सवाल से बचने के लिए वह सभी तरह के बहानेबाजी और टालमटोल का रास्‍ता अपनाती है। अधिक हिन्‍दी स्‍कूल खोलने की बात करना, सादरी में शिक्षा शुरू करने की बात को सामने रखना आदि इसी बहानेबाजी का एक अंग है।

 

आदिवासी विकास परिषद को शिक्षा पर सरकार से बात करने पर सिर्फ विश्‍वविद्यालय स्‍तर पर परीक्षा में हिन्‍दी भाषा के विकल्‍प पर ही बात करनी चाहिए। हाई स्‍कूल और प्राइमरी स्‍कूल की स्‍थापना तो होती रहती है और आवश्‍यकतानुसार होती ही रहेगी। इस पर तो जिला प्रशासन से भी बात की जा सकती है। लेकिन जब राज्‍य सरकार के स्‍तर पर बातचीत होती है तो ऐसे मुद्दों पर बात की जानी चाहिए, जिस पर निर्णय होने से समाज को सबसे ज्‍यादा लाभ होगा।

 

यदि पश्चिम बंगाल सरकार हिन्‍दी को विश्‍वविद्यालय स्‍तर पर परीक्षा का एक विकल्‍प के रूप में मान्‍यता नहीं देना चाहती है, तो उसे अन्‍य राज्‍यों के विश्‍वविद्यालयों की शाखा डुवार्स तराई में खोलने और उन विश्‍वविद्यालयों को अपनी शैक्षणिक गतिविधियॉं चलाने के लिए अनुमति देनी चाहिए। भारत सरकार ने संसद में बिल पास करके अमरकंटक में आदिवासी विश्‍वविद्यालय की स्‍थापना की है। उसकी शाखा खोली जा सकती है। यदि पश्चिम बंगाल सरकार हिन्‍दी पर अपनी हट‍धर्मिता को नहीं छोडती है तो उसे आदिवासियों और अन्‍य हिन्‍दी भाषी जनता के विकास के लिए अन्‍य राज्‍यों के विश्‍वविद्यालयों को पश्चिम बंगाल में गतिविधि चलाने के लिए अनुमति देने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए। यदि सरकार खुद भी हिन्‍दी को मान्‍यता नहीं देगी और अन्‍य को भी शैक्षणिक गतिविधियॉं चलाने की अनुमति नहीं देगी, तब सरकार की नेकनिय‍त की पोल खुल ही जाएगी। ऐसी सरकार को आदिवासी विरोधी, गरीब विरोधी का तमगा तो मिलेगा ही। लोगों के शिक्षा अधिकार का हनन करने के लिए देश भर में इसके विरूद्ध अभियान भी चलाया जा सकता है और पश्चिम बंगाल में गरीबों के साथ होने वाले अन्‍याय और भेदभाव को बताया जा सकता है।   

 

क्या है हिन्दी कॉलेज का फण्डा” पर 2 विचार

  1. वर्तमान सरकार की हिंदी भाषा के प्रति जारी पहल हिंदी भाषी विद्यार्थियों तक पहुँचे, इसके लिए अधिकारियों की ओर से विधिवत् सहयोग की अपेक्षा है।

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  2. Recently a Hidi collage established on 2014 near the Banarhat and Binnaguri as the name of Banarhat Kartik Oraon Hindi Government College, this collage actualy established for Tea Garden Student (ST ) but unfourtunately what % of Tea Garden ST student got addmission in this collage. Still less % of ST student got addmission. we all have to fight for maximum of ST student get addmission.

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