गुलाम वोटर

नेह अर्जुन इंदवार

आप किसी भी सरकार के उलटे सीधे, जन-जीवन के लिए अहितकर, असंवैधानिक, स्वार्थी, बदमाशी कामों को ऑंखें बंद करके बेहयायी से इसलिए समर्थन करते क्योंकि आप उस पार्टी के समर्थक हैं, यह बताता है कि देश में जनतंत्र किस चिडिया का नाम है ? इसका सीधा मतलब यह है कि आप को पता ही नहीं है कि जनतंत्र में जनता के कर्तव्य क्या है ? यह देश गाजर मूली की तरह किसी सत्ताधारी पार्टी के खरीदे गए सप्ताह भर की सब्जी नहीं है। यदि जनता और देश से अधिक किसी पंचवर्षीय सरकार को अहमियत मिलती है तो यह राष्ट्र हित की सोच नहीं है, बल्कि देशभक्ति के नाम पर चूँ-चूँ का मुरब्बा चिंतन है। यदि ऐसी बातें प्रधानता पाती है तो इसका मतलब यह है कि देश में शिक्षा और मीडिया लोकतांत्रिक मूल्यों और भावनाओं को आप में सींचने में नाकाम रही है। देश तमाम नागरिकों के प्राकृतिक सम्प्रभूता के इकट्ठे राजनैतिक भावनाओं का प्रस्फूटन है और यह किसी पंचवर्षीय सरकार के चरणों की धूल नहीं है कि कोई सरकार जनता के प्राकृतिक सम्प्रभूता से उपजे राजनैतिक और आर्थिक अधिकारों से मनमाफिक खिलवाड़ करे। न्यायालय को जन-जन के इसी अधिकार की रक्षा के लिए सृजित किया गया है, न कि उसे किसी पार्टी की सरकार के स्वार्थ में नीलाम करने के लिए। संसद से चतुराई पूर्वक कोई बिल पास कर देने से ही कोई बिल देश के सिर पर चढ़ कर उसका मालिक नहीं बन जाता है, बल्कि उसे जनकल्याणकारी, हितकारी, मानवीय, धरती पुत्र होने के शर्तों को भी पूरा करना होता है। जन-जन का दुश्मन बन कर कोई कानून देश के छाती पर मूँग नहीं गल सकती है। संसद के द्वारा कानून निर्माण एक तकनीकी पहलू है, न कि सर्वोपरि अधिकार आक्रमण कार्रवाई ? यदि देश में भोजन-अधिकार और उसके मूल्यांकन और मार्केटिंग पर कोई दूरगामी निर्णय लेना अपेक्षित हो, तो देश में इस पर जनमत संग्रह अनिवार्य होना चाहिए। एक एक व्यक्ति से उनके अधिकार के बारे पूछा जाए। सर्वोच्च विषय पर क्यों जनमत संग्रह की बात नहीं होती है। आखिर यह कैसा लोकतंत्र है और कैसे लोकतांत्रिक अधिकारों के सुरक्षा की व्यवस्था ?? .चाहे आप कांग्रसी, भाजपाई, त्रृणमूली, समाजवादी, उग्रवादी या नम्रवादी हैं, अपनी पार्टी के उल्‍टे और जनता विरोधी कार्यों को इसलिए समर्थन देते हैं क्योंकि आप उस पार्टी के कट्टर समर्थक है और आपने उस पार्टी को वोट भी दिया था। वाह !!! क्या भारतीय लोकतांत्रिक सोच है ???? ……………………….

.भाई, सत्ता तो महज एक हजार लोगों के हाथों में सिमटा हुआ है लॉजेंस है, जिसे आप किसी भी हालत में जनता बन कर नहीं चूस सकते हैं। यदि आप सत्ता के घी में तैराकी कर रहे और उसे दिन रात पी रहे लोगों के गलत और जन विरोधी कार्यों का समर्थन करते हैं तो इसका मतलब हुआ कि आपके देशप्रेमी विवेक और सोच में बहुत भारी खामियॉं रह गई है और दिमाग स्वतंत्र रूप से क्रियाशील नहीं है।बल्कि आप सिर्फ एक शरीर हैं विचारों से सम्पन्न इंसान नहीं। .समीक्षा, विश्लेषण, आलोचना, समालोचना ही समाज और देश तथा आम नागरिक के मानसिक धरातल को स्वस्थ बनाता है। ये कड़वी दवा है लेकिन यह लोकतांत्रिक काया को स्वास्थ्य और चंगा रखता है। किन्हीं अपहरणकर्ताओं के द्वारा आपके अधिकारों के अपहरण पर आप चुपचाप नहीं बैठ सकते हैं। .राजनैतिक पार्टी की गुलामी से छूटकारा पाए बिना क्य आप अपने इंसानियत और देशप्रेम को सच्चा और निष्कपट साबित कर सकते हैं ???? भ्रष्टाचार और सत्ता घमंड में लिपटे नेताओं की आयु पाँच-दस साल से अधिक नहीं होती है? वे आपके समर्थन के बदले आपसे लिपट कर कभी भी आपको न धन्यवाद देने वाले हैं और न आपसे कोई प्यार का संबंध बना कर रखने वाले हैं। कभी उनके लाखों के कपड़ों को छूने की कोशिश तो करके देखिए, लात घूँसे, गोलियां से आपका स्वागत न हो, तो आप खुद को मिस्टर इंडिया साबित कर ही लेंगे। .वे तो आपको अपने लक्ष्य और स्वार्थ की पूर्ति में एक चारा से अधिक कुछ नहीं समझते। तो क्या आप उनके गुलाम बन कर अपने ही नजरों में खुद को गिरा हुआ जीवन व्यतीत करने लायक समझते हैं। यदि ऐसा है तो आपको नेताओं की गुलामी मुबारक हो !!!! 16.01.2021