नेह इंदवार
जैसे अनाज की मंडी लगी होती है और फसलें आतीं हैं, जाती हैं। वैसे ही अवधारणाओं की मंडी लगी हुई है। जहाँ धारणाओं और अवधारणाओं की सप्लाई हो रही हैं। मंडी से खुदरा बाजार में आवधारणाएँ भेजी जा रही हैं। रोज नयी नयी धारणाएँ विभिन्न प्रकार के मेकअप लगाएँ आ रहीं हैं। बाजार गर्म है। अवधारणों से सजी हुई मोटी-मोटी किताबें भी मंडी में आती हैं और नये पुराने अवधारणों पर गर्व से अपना धाँसु अवधारणा प्रस्तुत करती हैं। एक अवधारणा ने कहा ईश्वर ने सबको बनाया । दूसरे ने कहा- “मतलब बनाने की क्रिया कोई करता है तो ईश्वर को किसने बनाया ?” “यदि ईश्वर को किसी ने बनाया तो उसे बनाने वाले को कौन बनाया ?”मतलब पहले अंडा आया या मुर्गी ? अवधारणाओं के साथ सवाल भी वातावरण में तैर रहे थे।
मंडी में बाबाओं की भी मंडी लगी हुई है। एक भाई साहब पूछ रहे थे, “बाबाजी ये इत्ता इत्ता ऊँचा पहाड़ को किसने कैसे बनाया ?”
बाबाजी स्वयं को ईश्वरीय दूत घोषित कर चुके थे, बड़े-बड़े धार्मिक समारोहों का आयोजन करते रहते थे, जवाब तो देना आवश्यक था, कहने लगे
“ईश्वर ने बड़ा का फवड़ा लेकर समुद्र को खोदा, कहीं न कहीं मलबा को रखना था, इधर रख दिया, बस क्या था पहाड़ बन गया।” उसने इत्मिनान से कहा। भक्त बेचारा का चेहरा खिल गया। प्रशंसात्मक दूष्टि से बाबाजी को देखा और एक लम्बा अष्टांग किया।
उधर दूसरे बाप जी मंडे में विराजे हुए थे। किसी ने पूछा “बापजी ये बिजली क्यों कड़कती है ?” बापजी ने बताया- “ये किसान बारिश को गाली देते हैं तो उसे गुस्सा आ जाता है। फिर क्या गुस्से वह बाऱिश बन कर टूट पड़ता है।”
आज्ञाकारी चेले युगों से इसी तरह से प्रकृति के रहस्यों को “महान ” गुरूओं से पुछते रहे और वे भक्तों के दिमाग में चक्कर काटते प्रश्नों का शमन करते रहे। भक्तों के दिमाग में तरह-तरह की अवधारणाएँ, कल्पनाएँ जन्मती रहीं । युगों पहले पृथ्वी अंतरिक्ष का केन्द्र बिन्दु था, जिसमें महज एक चाँद, एक सूरज और कुछ टिमटिमाते तारे थे । बाकी के बारे कोई सवाल भी तो नहीं था, गैलेक्सी और सौर आंधी, क्षुद्र ग्रहों के बारे कोई सवाल नहीं था। तो साहब अवधारणाओं को कुछ तो आराम करना चाहिए कि नहीं ?
तब गुरूओं ने बताया कि चाँद तारे पृथ्वी और आदमी को सात दिनों में बनाया गया और आठवाँ दिन बनाने वाले को आराम भी करने की जरूरत आन पड़ी। पूरा थक गया था बेचारा।
नाग साँप के करवट बदलने पर तो पृथ्वी थर-थर काँपती है और सुनामी का पानी पहाड़ पर चढ़ने के लिए दौड़ पड़ता है। अब देखो न एक विशाल भगवान के सोने और जागने से ही सृजन और प्रलय होता है, यह गुरूजी खूब बताते हैं क्यों कि उन्होंने तो अपनी आँखों से देखें हैं जी। संदेश की कोई गुंजाईश है कहीं ? ऐ !!
अवधारणाओं की मंडी में बहुत आमद है। कोई शक सुबहा ?
एक बड़ा सा हांडी रखा हुआ होता है जिसे जलते आग पर चढ़ाया जाता है, अब क्या है बदमाशों, बलात्कारियों, हत्यारों तुम्हें उन कड़ाहियों में मछली की तरह भाजे जाएँगे, सावधान हो जाओ कमीनों ! यह आग एलपीजी से जलता है या जंगल की लकड़ी से पूछना मना है।
सुनो ! गुरूओं ने देख कर बताया है कि स्वर्ग में नुकीली नाक वालीं फिल्मी नायिकाओं से भी सुंदर अप्सराएँ रहती हैं और तुम्हारा इंतजार कर रही हैं, कुछ तो इस दुनिया के अमन चाहने वाले दुश्मनों को मारो और मरो! भावनाओं से ओतप्रोत शरीर यहीं छोड़ जाना, अप्सराओं को वहाँ जाकर सिर्फ टुकर-टुकर देखना! अमर हो चुकी अप्सराओं तुम्हारे जैसे नशपिटे से क्या इश्क लड़ाएगी ? भक्त कन्फ्यूज, दुश्मन को मारे कि खुद मरे !
बाप रे भावनाओं को गुरूजीओं जी कैसे उभारते हैं ! भई अवधारणाओं की किताबों में क्या कुछ नहीं लिखा है! लेकिन भाई मेरे इन पवित्र ग्रंथों में सच्चाई कितनी है ? एक अवधारणा ने पूछ मारा।
अबे सच्चाई वच्चाई छोड़ो जब मैंने किताब वाले कंपनी का साइन बोर्ड वाले आहाते को अपना मान ही लिया हूँ तो बस मैं हूँ, मेरे गुरूजी हैं और है मेरे पवित्र किताब। बाकी जाए भाड़ में। दूसरे अवधारणा ने दृढ़ता से कहा ।
अरे भाई, अपना विवेक तो लेते जाओ किसी ने जोर से पीछे से चिल्लाया। अबे जाओ भाड़ में भेजो मेरे विवेक को, मैं कोई दार्शनिक थोड़े हूँ जो उसकी जरूरत पड़ेगी। मैंने बस एक अवधारणा को धारण कर लिया है, दुनिया की कोई ताकत मुझे उससे जुदा नहीं कर सकती है, मैं असली धर्मी हूँ, उन्होंने खुद ही ताव में आकर घोषणा कर दी। दुनिया सन्न रह गयी।
अरे वाह ! तुम ही मेरे असली चेले हो- गुरूजी ने खुश होकर जोर से चिल्लाया। गुरू और चेला गले मिल रहे थे।
उधर अवधारणाओं के मंडी में नयी नयी धारणाओं की आमद बढ़ रही थी। कोई दूरबीन थामे चिल्ला रहा था देखो-देखो बिना पंख के उड़ता हुआ बड़ा सा गदा थामे कोई एलियन अभी-अभी मंगल ग्रह को पार करके पृथ्वी की ओर बढ़ा चला आ रहा है।
समाचार प्रिंट और एलॉक्ट्रोनिक मीडिया के माध्यम से क्षणों में फैल गई। अवधारणाओं के बाजार में खूब हलचल मची गई है।
धर्म-अहाते में नृत्य करते लोगों को बताया गया “स्वर्ग दूत पधार रहे हैं”, नृत्य में जोश बढ़ गया।
इसी बीच इलेक्शन कमिशन ने आम चुनाव की घोषणा कर दी।
सभी गुरूजीयों के चेहरे पर मुस्कराहट तैर रहे थे।